अमलेंदु भूषण खां/ नई दिल्ली। राजस्थान में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच भाजपा की चुप्पी किसी तूफान का संकेत दे रही है। असंतोष और बगावत की पशोपेश में सचिन पायलट समेत तीन मंत्रियों के पद से बर्खास्तगी और सचिन समर्थक विधायकों के बाद भाजपा प्रदेश में अपनी पैनी नजर लगा रखी है। इसके लिए पार्टी कई मोर्चें पर काम कर रही है। जिसमें प्रदेश में राष्ट्रपति शासन से लेकर बिना सीधी लड़ाई लड़े सचिन के सहारे मुकाम पाने तक की योजना है। लेकिन भाजपा को सबसे ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिधिंया का पूरे घटनाक्रम पर मौन होना और गहलोत सरकार गिरने के बाद संख्या बल जुटाना सरदर्द बना हुआ है। बहरहाल भाजपा ने वहां पर कांग्रेस के दुर्ग के रास्ते देख लिए हैं और अब वह कभी भी सेंध लगा सकती है।
भाजपा ने राजस्थान में राज्यसभा के हाल के चुनाव के दौरान अपनी ताकत तौल चुकी थी। इस समय जबकि सचिन पायलट कांग्रेस के भीतर के हालात से परेशान होकर उसके पास आए, तो उसने उनके साथ सहानुभूति तो रखा, लेकिन राज तिलक करने से दूरी बनाए रखी। दरअसल पायलट के साथ जो विधायक खड़े थे उनसे कांग्रेस सरकार तो गिर सकती थी, लेकिन भाजपा की सरकार नहीं बन सकती है। साथ ही पायलट भी असंतोष और बगावत की ऊहापोह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। पायलट के साथ कुछ ऐसे विधायक भी हैं जो सरकार तो गिरा सकते हैं, लेकिन भाजपा के साथ नहीं आ सकते हैं।
भाजपा सूत्रों ने कहा कि भाजपा नेतृत्व ने उतनी ही कोशिशें की जिससे कांग्रेस की दरारें और गहरी हो सके और भविष्य का रास्ता बन सके। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने इस मिशन पर अपने किसी बड़े नेताओं को नहीं लगाया था, चूंकि सचिन पायलट ने खुद ही भाजपा से संपर्क किया था इसलिए भाजपा बहुत ज्यादा जल्दबाजी नहीं करना चाहती थी। पायलट ने भाजपा नेता ज्योतिराज सिंधिया से मुलाकात कर जो बातें सामने रखी थी, भाजपा ने उनका संज्ञान लिया। सूत्रों का कहना है कि पार्टी को सबसे बड़ी चिंता यह थी कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी सचिन को साथ लाने में सहमत नहीं दिखीं। जिस तरह मध्यप्रदेश में सिंधिया को साथ लाने की कवायद शिवराज सिंह चौहान ने की थी। बहरहाल भाजपा ने अभी भी उम्मीद नही छोड़ी है। पार्टी का मानना है कि यदि आगमी कुछ दिनों तक गहलोत सरकार को लेकर इसी तरह का माहौल बना रहा तो, राज्य में राष्ट्रपति शासन में छह महीनें लगाकर प्रदेश में मध्यावधि चुनाव में जाया जा सकता है।