अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली । उम्र दो साल और वजन 45 किलोग्राम । जबकि इस बच्ची की मां का बजन मात्र 50 किलोग्राम । है न अजूबा। इस उम्र में सामान्यतया बच्चे का वजन 12 से 15 किलोग्राम के बीच होता है। बच्ची का ज्यादा वजन होने के कारण मां ममता के आंचल में समेटकर बच्ची को अपनी गोद में उठा ही नहीं पाती थी। पिता राहुल किसी तरह बच्ची को गोद में उठा पाते थे। बच्ची ख्याति मा-पापा से हमेशा खाना मांगती रहती थी। लेकिन ख्याति अब ज्यादा खाना की मांग नहीं करती है क्योंकि उसकी बेरियाट्रिक सर्जरी हो गई है। मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, पटपड़गंज के डॉक्टरों का कहना है कि यह दुनिया की पहली बच्ची है जिसकी बैरियाट्रिक सर्जरी की गई है।
मैक्स अस्पताल के सर्जन डॉ. विवेक बिंदल का कहना है कि इससे पहले सउदी अरब की एक बच्ची जिसकी उम्र दो साल तीन माह और वजन 36 किलोग्राम थी की बैरियाट्रिक सर्जरी की गई है।
दिल्ली के रहने वाले पिता राहुल पेशे से कॉस्ट एकाउंटेंट हैं। राहुल बताते हैं कि जब ख्याति छह माह की थी तब उसका वजन 15 किलोग्राम हो गया। बढ़ते वजन को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है। परिवार की चिंता तब और बढ़ गई जब ख्याति एक साल की हुई और वजन 23 किलोग्राम पर पहुंच गया। राहुल ने बताया कि वह मैक्स अस्पताल के एंडोक्रोनोलाजिस्ट से संपर्क किया। डॉ.मनप्रीत सेठी ने कई तरह की जांच करवाने की सलाह दी। जांच सभी रिपोर्ट सही आई । ख्याति के शरीर में किसी तरह की समस्या नहीं थी।
डॉ. सेठी ने बताया कि ख्याति को लेकर डॉक्टरों की टीम बनाई गई और बढ़ते वजन को रोकने के लिए मंथन किया गया। डॉक्टरों ने बैरियाट्रिक सर्जरी करवाने का सुझाव पिता को दिया। काफी सोच विचार करने के बाद पिता तैयार हो गए। यह एक मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम प्रयास था, जिसमें पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ मनप्रीत सेठी, पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ राजीव उत्तम, और पेन मैनेजमेंट एंड एनीस्थिसिया के निदेश्क और विभागाध्यक्ष डॉ अरुण पुरी शामिल थे, जिन्होंने ऑपरेशन से पहले और बाद में बच्चे को अपनी निगरानी में रखा।
यह बच्ची जन्म के समय सामान्य थी और उसका वजन 2.5 किलोग्राम था। हालांकि, जन्म के तुरंत बाद उसका वजन तेजी से बढ़ने लगा और छह महीने में उसका वजन 14 किलोग्राम हो गया। उसका एक बड़ा भाई है जो आठ साल का है और उसकी उम्र के अनुसार उसका वजन सामान्य है। अगले डेढ़ साल में बच्ची का वजन तेजी से बढ़ता गया और 2 साल और 3 महीने में उसका वजन 45 किलोग्राम तक पहुंच गया। उसकी हालत इस हद तक बिगड़ गई कि उसे नींद के दौरान सांस लेने में बहुत परेशानी होने लगी और उसे ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया हो गया और वह अपनी पीठ के बल सो नहीं पा रही थी। तब हमने अंततः बेरिएट्रिक सर्जरी करने का फैसला किया। हालांकि यह एक कठिन निर्णय था, लेकिन यह उसकी जान बचाने का एकमात्र तरीका था। ख्याति नाम की यह बच्ची इतनी मोटी हो गई थी कि उसके माता-पिता भी अब अपनी दो साल की बच्ची को उठा नहीं सकते थे और वह 1 साल 10 महीने की उम्र से व्हीलचेयर पर ही थी।
लेकिन समस्या यही समाप्त नहीं हुई। पेन मैनेजमेंट व एनिस्थिया विभाग के प्रमुख डॉ.अरुण पुरी ने बताया कि बच्चों को बेहोश करना सबसे जटिल समस्या होती है। ख्याति के मामले में तो यह निश्चय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि कितनी डोज दी जाए जिससे किसी प्रकार का खतरा न हो। सामान्य बच्चों में ऐसी समस्या नहीं आती है।
सर्जरी करने वाले डॉ. बिंदल कहते हैं कि ख्याति की सर्जरी करना जोखिम भरा था। क्योंकि सर्जरी के दौरान खून बहने की ज्यादा संभावना थी। डॉ विवेक बिंदल ने कहा, “ख्याति की सर्जरी करने का निर्णय एक मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम का निर्णय था। हालांकि बच्चों में बेरिएट्रिक सर्जरी की निम्न आयु सीमा 12-15 वर्ष है; लेकिन उसके मामले में सर्जरी एक मेडिकल इमरजेंसी थी। हमने बाल रोग विशेषज्ञों, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और परिवार के साथ इस बारे में विस्तार से बातचीत की, साथ ही बच्ची को अस्पताल में भर्ती करने से पहले चिकित्सा साहित्य की गहन समीक्षा की। उसकी लैप्रोस्कोपिक गैस्ट्रिक स्लीव सर्जरी अथवा स्लीव गैस्ट्रेक्टोमी की गई, जिसमें पेट के एक हिस्से को सर्जरी के द्वारा हटा दिया जाता है। उसके मामले में सबसे बड़ी चुनौती थी इतने छोटे बच्चे में इस तरह की प्रक्रिया के किसी भी रेफरल लिटरेचर या टेक्नीकल वीडियो का उपलब्ध नहीं होना। इसके अलावा, स्टेपलर और उपकरण भी वयस्कों के लिए ही डिज़ाइन किए गए हैं। दो साल के बच्चे में उदर गुहा (एब्डोमिनल कैविटी) बहुत छोटी होती है, चाहे उसका वजन कुछ भी हो। इसके अलावा, बच्चों में रक्त की मात्रा बहुत कम होती है, और इस तरह की सर्जरी में रक्त काफी निकलता है।ʺलेकिन ऐसा नहीं हुआ। ख्याति की सर्जरी सफल रही और उसका वजन सर्जरी के 20 दिन बाद पांच किलोग्राम कम हो गया। धीरे धीरे ख्याति का वजन कम होता जाएगा।