डॉ.एम.रहमतुल्लाह / नई दिल्ली। अभीतक अलीगढ़ की पहचान अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी और ताले के कारण थी लेकिन आज से राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी के लिए भी जाना जाएगा। यह पहचान अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से दी गई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर 2019 के उपचुनाव में यूनिवर्सिटी बनाने की घोषणा की थी। आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक यूनिवर्सिटी और डिफेंस कॉरिडोर की सौगात दी। जाट नेता और स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर बनने वाली यूनिवर्सिटी के लिए शिक्षा विभाग से 101 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। 92 एकड़ जमीन पर इसका निर्माण होगा। माना जा रहा है कि इसके जरिए मोदी सरकार ने जाटों को साधने की कोशिश की है। जाट नेता के नाम पर यूनिवर्सिटी की आधारशिला रखना सियासी तौर पर काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह वर्ष 1915 में काबुल में स्थापित भारत की पहली प्रोविजनल सरकार के राष्ट्रपति भी थे। उस सरकार का गठन विभिन्न अफगान कबीलों के प्रमुखों तथा जापान समेत कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मदद से किया गया था।
पिछले नौ माह से तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर आंदोलन चला रहे हैं। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले मुजफ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत में बड़ी संख्या में किसान जुटे थे। किसानों ने यहां से भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था। ऐसे में किसान महापंचायत और किसान आंदोलन की धार को कम करने के लिए पीएम का यह दौरा बेहद अहम माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जाटों के बीच राजा महेंद्र प्रताप सिंह का काफी सम्मान है और उनके नाम पर यूनिवर्सिटी खोले जाने को वे स्वाभिमान से जोड़ेंगे, जिससे उनका झुकाव एक बार फिर भाजपा की तरफ हो सकता है। राजा महेंद्र ने ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए अपनी जमीन दी थी, लेकिन यूनिवर्सिटी में कहीं भी उनका नाम नहीं था। जिसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का नाम उनके नाम पर करने की मांग की जा रही थी।
पश्चिमी यूपी में एक कहावत मशहूर है ‘जिसके जाट, उसी के ठाठ’। इसका मतलब यह है कि लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव, जाट मतदाताओं ने जिस पर मेहरबानी कर दी उसी के हाथ जीत लग गई। वैसे तो पूरे उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी छह से आठ फीसद के आसपास है, लेकिन पश्चिमी यूपी में जाट 17 फीसदी से ज्यादा हैं। पश्चिमी यूपी में जाटों की मुस्लिम और दलितों के बाद सबसे बड़ी आबादी है। इस इलाके के पांच मंडलों आगरा, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद और आंशिक रूप से बरेली में जाट बेहद प्रभावी है।
सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी और फिरोजाबाद में जाट आबादी किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए एक बड़ा वोट बैंक है। जाटों का असर करीब 120 विधानसभा सीटों पर भी है। ऐसे में आगामी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी दलों ने जाट वोटों को लेकर सक्रियता बढ़ा दी है, खासतौर से भाजपा ने। दूसरी तरफ रालोद भी किसान आंदोलन के बहाने अपनी खोई जमीन हासिल करने की कोशिश कर रही है।
2013 में मुजफ्फरनगर हिंसा के बाद जाटों ने भाजपा का साथ दिया था। भाजपा के प्रति जाटों की निष्ठा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के अलावा 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रही। 2014 में जाटों ने भाजपा पर इतना भरोसा दिखाया था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटें भाजपा की झोली में चली गई थी। यही सिलसिला 2019 के चुनाव में भी चला। सपा-बसपा और रालोद का मजबूत गठबंधन बुरी तरह फ्लॉप हो गया। लेकिन माना जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों से चल रहे किसान आंदोलन के कारण पश्चिम यूपी के जाट जो खासतौर पर खेती-किसानी में लगे हुए हैं वे भाजपा सरकार के नए कृषि कानूनों से नाराज हैं।
किसान आंदोलन के कारण भाजपा यहां काफी कमजोर दिखाई दे रही है। ऐसे में पीएम का यहां आना और राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर यूनिवर्सिटी का खुलना भाजपा को मजबूती दे सकता है। सियासी जानकार इसे जाटों को साधने के लिए बीजेपी के सियासी दांव के रूप में देख रहे हैं। माना जा रहा है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर बनने वाली इस यूनिवर्सिटी का असर यूपी विधानसभा चुनाव में लगभग 120 सीटों पर पड़ेगा। इन सीटों पर जाट वोट बैंक का प्रभाव है। उन्हें साधने के लिए ही बीजेपी राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर यूनिवर्सिटी खोल रही है।
अपने पुराने वोट बैंक को बचाए रखने के लिए भाजपा पश्चिमी यूपी में एड़ी-चोटी का जोड़ लगाए हुए है। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादातर सीटों पर भाजपा ने जाट उम्मीदवारों पर ही भरोसा जताया। यहां तक कि गुर्जर बहुल कही जाने वाली गौतमबुद्धगर में भी जाट उम्मीदवार ही उतार दिया। इसके अलावा भी ज्यादातर सीटों पर जाटों को ही टिकट दिया गया।
भाजपा जाटों को यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि किसान आंदोलन महज भाजपा को कमजोर करने के लिए किया जा रहा है और किसान नेता राकेश टिकैत पर विपक्षी दलों का मोहरा भर हैं। वैसे भाजपा टिकैत को लेकर काफी सतर्क है क्योंकि पश्चिमी यूपी में उनका काफी प्रभाव माना जाता है। केंद्र सरकार बेशक तीनों कृषि कानून वापस लेने के तैयार नहीं लेकिन भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में भी जाटों को अपने साथ पूरी तरीके से जोड़े रखना चाहती है।
जाट युवाओं को साधने की कोशिश
युवाओं को शिक्षा, देश की रक्षा। इस टैग लाइन के साथ ही आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन से नाराज युवाओं और जाटों को मनाने के लिए यूनिवर्सिटी और डिफेंस कॉरिडोरी की सौगात दी, जिससे यह संदेश जाए कि भाजपा सरकार युवाओं के शिक्षा और रोजगार को प्राथमिकता दे रही है। इससे केवल यूपी ही नहीं बल्कि हरियाणा और राजस्थान के जाट समुदायों को भी साधा जा सकेगा। भाजपा यूपी में रोजगार और युवाओं के मुद्दों को प्राथमिकता दे रही हैं। बताया जा रहा है कि इन्हीं मुददों के साथ भाजपा चुनावी मैदान में उतरेगी।