700 से भी अधिक किसानों की शहीदी के बाद प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी ने पार्टी को चुनावों में फंडिग करने वाले कारपोरेट घरानों के लिए बनाए गए तीन विवादित फॉर्म बिलों को वापिस लिया है.
ट्विटर पर भूटान की राजकुमारी के मां बनने की बधाई और क्रिकेटर शिखर धवन के चोटिल होने पर हौंसला देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक इन किसानों की शहादत पर एक भी शब्द नहीं बोला है.
26 नवंबर को इस ऐतिहासिक आंदोलन का एक साल पूरा हो जाएगा. हो सकता है कि भविष्य में इस बात पर भी शोध हो कि इस आंदोलन की उम्र इतनी लंबी कैसे हुई!
यकीनी तौर पर इस आंदोलन के पीछे कई पहलू रहे. कृषि के क्षेत्र में लगातार गिरावट के कारण बने असुरक्षा सबसे बड़ा कारण रहे. लेकिन एक भावना ऐसी थी जो किसानों को देश की आजादी से पहले के आदोंलन से जोड़ गई जिसमें वे उस समय के शहीदों की तरह अपनी जान हथेली पर रख के दिल्ली के पांच बॉर्डरों पर बैठ गए और वह भावना थी शहीद भगत सिंह की शहादत.
अंग्रेज हुकूमत ने 23 मार्च 1931 में लाहौर साजिश के आरोप में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दे दी थी.
इस एक पूरे साल में इस लेखक को ना जाने कितनी बार दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों के बातचीत करने का मौका मिला. पहले दिन से ही उनके टैंटों के बाहर शहीद भगत सिंह के फोटो और बैनर लग गए थे.
सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर बैठे अधिकतर किसानों की छाती पर भगत सिंह के जोश में भरे बेखौफ चेहरों वाले यह बिल्ले चमकते दिखते हैं.
हरियाणा के जिंद जिला के हंडोला गांव के सुरेंदर कुमार की उम्र 25 साल की है और वह पिछले साल नवंबर से ही सिंघू बॉर्डर पर कैंप डाल कर बैठे हैं. उनके टैंट के बाहर भगत सिंह का बड़ा बैनर टंगा है.
इस बैनर को लगाए जाने की वजह के बारे में पूछे जाने पर सुरेंदर बताते हैं,“ शहीद भगत सिंह से 23 साल की उम्र में कुर्बानी दी थी. इस जज्बे को सोचने और एहसास करने से ही एक किस्म में नई ताकत मिलती है. हर रोज उनका चेहरा मुझे अंदर से तैयार करता है कि जरुरत पड़ी को इस आंदोलन के लिए मैं भी जान देने का तैयार हूं.”
सोनीपत के सुनील कुमार सिंघू बॉर्डर पर किसान एकता अस्पताल के बाहर चारपाई पर किसान एकता मोर्चा के झंडे और शहीद भगत सिंह के बिल्ले बेच रहे हैं.
40 साल के सुनील कुमार बताते हैं, “ मैं पिछले साल 17 दिसंबर से ही यहां हूं और शुरुआत में मैंने हर दिन 100 से भी ज्यादा भगत सिंह के बिल्ले बैचे हैं. उनके पोस्टर खरीदने वाले बहुत ग्राहक हैं. बेशक यह मांग पिछले कुछ महीनों में कम हुई है लेकिन आज भी मैं हर दिन 20-25 बैज और 10-12 पोस्टर बेच लेता हूं. किसान आते हैं और पांच से दस रुपये वाले यहे बिल्ले मांगते हैं.”
79 साल के रघुवीर सिंह पटियाला के मंडौली गांव से आए हैं. भगत सिंह की शहादत के इस आंदोलन पर पड़ने वाले असर के बारे में बात करने पर वह जोश में कहते हैं, “ भगत सिंह इंनसान नहीं थे बल्कि एक विचार थे. उनका मानना था कि आप इनसान को मार सकते हो लेकिन विचार को नहीं. उन्होंने अंसेबली में बम का धमाका करके अपने हक की लड़ाई की आवाज अंग्रेजों के कानों में डाली थी. भगत सिंह के उस जज्बे ने इस आंदोलन को मजबूती दी है. सरकार को हमारी हर बात सुननी पड़ेगी.”
पटियाला के लोहचमा गांव के सरदार नायाब सिंह की उम्र देखने भर से ही लगता है कि उनका इस आंदोलन में बैठना जान जोखिम में डालने वाला है. सीने पर भगत सिंह का बिल्ला लगा है.
86 साल के नायाब सिंह जोश में कहते, “भगत सिंह का इस आंदोलन पर बहुत बड़ा असर है. अंग्रेज भगत सिंह से इसलिए परेशान थे कि वह एकता और हक की बात करता था. इसलिए अंग्रेज उससे डरा हुआ था. किसानों की एकता के कारण मोदी भी ठीक ऐसे ही डरा हुआ है. भगत अमीर-गरीब में बराबरी की बात करते थे. उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया. उन्होंने सिस्टम पर वार किया. यह आंदोलन भी ठीक ऐसे ही चला है. यह लड़ाई सिस्टम के खिलाफ है. अडानी-अंबानी के खिलाफ है.