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राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल से जनता को फायदा, विरोध में डॉक्टर

amlendu bhusan by amlendu bhusan
Mar 22, 2023
in All Categories, HomeSlider, राजस्थान
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UPA की रणनीति बनाने के लिए सीएम अशोक गहलोत ने दिल्ली में डाला डेरा
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जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : राजस्थान में जनता की सेहत को ठीक रखने के लिए लाया गया राइट टू हेल्थ बिल को लेकर डॉक्टर विरोध कर रहे हैं। पिछले कई दिन से डॉक्टर बिल के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए बल का प्रयोग भी किया। उधर, विरोध प्रदर्शन को नजरअंदाज करते हुए सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में बिल पास करा लिया।

राजस्थान का राइट टू हेल्थ बिल क्या है?

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राइट टू हेल्थ बिल 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी दल कांग्रेस के चुनावी वादों में से एक था। पहली बार वित्त वर्ष 2022-23 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बिल को लाने की घोषणा की। इसके मुताबिक, सितंबर 2022 में विधेयक को विधानसभा में पेश किया गया लेकिन अनिवार्य मुफ्त आपातकालीन उपचार के प्रावधान सहित कई अन्य कारणों से यह आगे नहीं बढ़ सका। भारी विरोध के चलते बिल विधेयक को प्रवर समिति को भेजा दिया गया। अब चालू बजट सत्र में मंगलवार को इसे पारित किया गया।

इस बिल से लोगों को क्या मिलेगा?

अस्पतालों में उपचार के लिए मरीजों को मना नहीं किया जाए इसीलिए राइट टू हेल्थ विधेयक लाया गया है। इसके अंतर्गत इमरजेंसी में इलाज का खर्चा सम्बन्धित मरीज द्वारा वहन नहीं करने की स्थिति में भरपाई राज्य सरकार करेगी। राइट टू हेल्थ विधेयक के तहत राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण लॉजिस्टिकल शिकायत का भी गठन किया गया है। साथ ही, जिला स्तरीय प्राधिकरण का प्रावधान भी किया गया है।

बड़े अस्पतालों को राज्य सरकार द्वारा रियायती दर पर जमीनें उपलब्ध करवाई गई हैं। इन अस्पतालों को राइट टू हेल्थ विधेयक के अंतर्गत जोड़ने का प्रावधान है। इस बिल में राज्य के निवासियों के लिए कुछ अधिकार देने के प्रावधान हैं, जैसे:-

क) निवासियों को स्वयं को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जानकारी लेने का अधिकार।

ख) निर्धारित सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में मुफ्त परामर्श, दवाओं, उपचार, आपातकालीन परिवहन और आपातकालीन देखभाल का अधिकार।

ग) निवासियों को अधिसूचित सभी सार्वजनिक अस्पतालों में सर्जरी के लिए मुफ्त/किफायती देखभाल का अधिकार।

घ) चिरंजीवी योजना के तहत कवर किए गए निवासियों को बीमा योजना के तहत सूचीबद्ध अस्पतालों के माध्यम से बीमा योजना के तहत मुफ्त सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार।

ङ) भूमि आवंटन के माध्यम से स्थापित निजी चिकित्सालयों में रियायती दरों पर निशुल्क सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार।

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च) सभी स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों द्वारा सार्वजनिक या निजी उचित रेफरल परिवहन का अधिकार।

छ) चिकित्सक के परामर्श के बाद भी रोगी के चले जाने की स्थिति में ट्रीटमेंट समरी लेने का अधिकार।

ज) सेवाओं का लाभ उठाने के बाद हुई किसी भी शिकायत के मामले में सुनवाई का अधिकार।

झ) प्रत्येक स्वास्थ्य केंद्र से भुगतान बाकी होने के बावजूद मृतक के परिवार के सदस्य या अधिकृत व्यक्ति को शव प्राप्त करने का अधिकार।

बिल का विरोध क्यों हो रहा?

बिल की घोषणा से ही इसे विरोध का सामना करना पड़ रहा है। बीते तीन दिन दिन से राज्य के कई शहरों में डॉक्टर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान जयपुर पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए बल का प्रयोग भी किया। सीएम गहलोत की घोषणा के बाद सबसे पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने अपना विरोध दर्ज कराया। एसोसिएशन के पदाधिकारियों की मानें तो इस बिल में निजी अस्पतालों की अनदेखी की गई है। IMA ने इस बिल को राइट टू डेथ करार दिया है।

बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी स्कीम के मुताबिक सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है। विरोध कर रहे संगठनों का कहना है कि सरकार अपने सरकारी अस्पतालों में योजना चलाए, लेकिन निजी अस्पतालों पर जबरन बिल लागू किया गया तो निजी अस्पताल बंद होने के कगार पर पहुंच जाएंगे। बिल में निजी अस्पतालों में इमरजेंसी इलाज फ्री में करना अनिवार्य है।

बिल में इमरजेंसी की कोई परिभाषा नहीं है। इमरजेंसी में फ्री इलाज देने के बाद सरकार निजी अस्पतालों को भुगतान कैसे करेगी? एम्बुलेंस सर्विसेज की लागत की भरपाई किस तरह की जाएगी ? बिल में कहा गया है कि मरीज के पास पैसे नहीं हैं, तो उसे बाध्य नहीं किया जा सकता है, लेकिन इलाज देना होगा। इनकार नहीं किया जा सकता। अगर हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर फ्री इलाज लेगा तो अस्पताल अपने खर्चे कैसे निकालेंगे?

आईएमए के प्रभारी सचिव डॉक्टर कट्टा का कहना है कि इस बिल में गर्भवती महिला को डिलीवरी का अधिकार किसी भी अस्पताल में दिया गया है। लेकिन, निजी अस्पताल उनसे डिलीवरी का खर्च नहीं ले सकता तो ये पैसे कौन देगा। डॉ. अनुराग शर्मा ने कहा कि इस बिल के ड्राफ्ट में एक कमेटी का जिक्र है जो तहसील स्तर पर बनाई जाएगी। इसमें तहसील स्तर के जनप्रतिनिधि और अधिकारी शामिल होंगे। कमेटी को अधिकार होगा कि वह कभी भी किसी भी अस्पताल की जांच कर सकेगी और अस्पताल का रिकॉर्ड भी देख सकेगी। इसे लेकर सभी डॉक्टरों में बहुत नाराजगी है। उनका कहना है कि कोई नॉन मेडिकल फील्ड का व्यक्ति उनकी जांच कैसे कर सकता है।

सरकार का क्या कहना है?

जोधपुर में मीडिया बात करते हुए सीएम अशोक गहलोत ने राइट टू हेल्थ बिल को लेकर अपना रुख साफ कर दिया है। उन्होंने कहा- इस बिल से आम जनता और डॉक्टर दोनों को ही फायदा होगा। डॉक्टरों को भी बिल में सरकार का साथ देना चाहिए, इस तरह विरोध नहीं करना चाहिए। बाकी जो भी समस्याएं हैं उन्हें बैठकर सुलझाया जा सकता है। इसके लिए सड़क पर आने की कोई जरूरत नहीं है। ये बिल सही है और सभी के हित का है।

वहीं, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री परसादीलाल मीणा ने मंगलवार को विधानसभा में कहा कि ‘राइट टू हेल्थ’ जनता के हित में है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने सभी सदस्यों के सुझाव के आधार पर इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजा था। विधेयक में सभी सदस्यों एवं चिकित्सकों के सुझाव शामिल किए गए हैं।

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