राजेश रापरिया
भाजपा को उम्मीद से कम लोक सभा सीटें मिलने के पीछे एक बड़ा कारण देश का रोजगार परिदृश्य भी है, जिसे अब मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में नकारना आत्मघाती साबित होगा। मार्च महीने में आयी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के कुल बेरोजगारों में 80% युवा हैं। द इंडिया इंप्लॉयटमेंट रिपोर्ट 2024 नामक इस रिपोर्ट की मानें तो पिछले करीब 20 सालों में भारत में युवाओं के बीच बेरोजगारी में 30% की वृद्धि हो चुकी है। वर्ष 2000 में शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी दर 35.2% थी, जो 2022 में 65.7% हो गयी। यह रिपोर्ट बताती है कि हाई स्कूल तक या उससे अधिक पढ़े युवाओं में बेरोजगारी का अनुपात सामान्य से कहीं ज्यादा है।
यह रिपोर्ट मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2000 से 2019 के बीच युवाओं की बेरोजगारी और अल्प-बेरोजगारी लगातार बढ़ी है, जबकि कोविड महामारी के बाद के वर्षों में इसमें कमी आयी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि युवा बेरोजगारी दर 2000 से 2019 के बीच दोगुनी से अधिक बढ़ गयी और 5.7% से बढ़ कर 17.5% तक पहुँच गई, लेकिन फिर 2022 में घट कर 12.4% रह गयी। बेरोजगारी से सबसे ज्यादा महिलाएँ प्रभावित हैं।
भारत में 2000 से 2022 के बीच रोजगार मुख्यतः स्वरोजगार या अनौपचारिक रहा है। लगभग 90% कार्यबल अनौपचारिक रोजगार में लगा हुआ है। केवल 10% लोग ही औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत थे। रिपोर्ट के अनुसार, कुछ ही नियमित कर्मचारी दीर्घकालिक अनुबंधों के तहत कार्यरत हैं और संविदात्मक रोजगार में वृद्धि हुई है। लेकिन ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि नियमित मजदूरों की वास्तविक मजदूरी स्थिर है या घट गयी है। वर्ष 2019 के बाद स्वरोजगार की वास्तविक आय में गिरावट आयी है। इस साल फरवरी में अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने स्किल इंडिया कार्यक्रम का जिक्र फख्र के साथ किया था कि इस कार्यक्रम के तहत तकरीबन 1.40 करोड़ युवाओं को कौशल का प्रशिक्षण मिला और रोजगार को बढ़ावा मिला। पर आईएलओ की रिपोर्ट इससे उलट यह बताती है कि देश के अधिकांश युवाओं में जरूरी कौशल की कमी है। देश के 75% युवा ईमेल में कोई डॉक्यूमेंट नत्थी (अटैच) नहीं कर पाते हैं। वहीं 60% युवा कंप्यूटर पर कॉपी-पेस्ट जैसे काम भी नहीं कर पाते हैं।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ़ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कामकाजी समूह जनसंख्या का 79% है। इस गणना के हिसाब से कुल 140 करोड़ की आबादी में से 111 करोड़ लोग कामकाजी आयु समूह में आते हैं। इनमें से तकरीबन 5 करोड़ महिलाएँ और 18 करोड़ पुरुष न तो कोई रोजगार कर रहे हैं और न ही किसी रोजगार की खोज या प्रशिक्षण ले रहे हैं।
देश में हर साल तकरीबन 70-80 लाख युवा रोजगार चाहने वालों की संख्या में शुमार हो जाते हैं। सिटी ग्रुप ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में बताया है कि श्रम बाजार में हर साल जुड़ रहे नये प्रवेशकों को नौकरी मुहैया कराने के लिए तकरीबन 1.20 करोड़ रोजगार सृजन करने की आवश्यकता होगी। आगामी सालों में विकास दर 7% भी मान कर चलें, तो सालाना 80-90 लाख रोजगार ही सृजित हो पायेंगे।
नौकरियों की गुणवत्ता यानी अल्प-रोजगार एक और गंभीर मामला है, जहाँ कई श्रमिक ऐसे कार्य कर रहे हैं जो एक व्यक्ति ही कर सकता है। कृषि क्षेत्र इसका सशक्त उदाहरण है। वित्त आयोग और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि देश की मुख्य चुनौती श्रम-प्रधान क्षेत्रों में पूँजी का पुनर्वितरण करना है। देश में बहुत अधिक पूँजी ऐसे उद्योगों में लगी हुई है, जो अधिक श्रमिकों को काम पर रखने में रुचि नहीं रखते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को उन उद्योगों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो पूँजी की प्रति इकाई पर अधिक श्रमिकों को रोजगार देते हैं। उन्होंने आगामी बजट को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा बताया है।