जनजीवन ब्यूरो/ नई दिल्ली :1 मई, 2025 की सुबह एक 37 वर्षीय मरीज को ब्रेन हैमरेज और बेहोशी की हालत में मणिपाल हॉस्पिटल लाया गया। मरीज को तुरंत आईसीयू में वैंटिलेटर सपोर्ट पर भेज दिया गया। लेकिन डॉक्टरों की पूरी कोशिश के बाद भी 12 मई, 2025 को मरीज की ब्रेन डेथ हो गई। मरीज के परिवार में उनकी पत्नी और एक 9 साल का बच्चा है।
इस हृदयविदारक स्थिति में भी मरीज की पत्नी ने दृढ़ता और साहस बनाए रखा और मरीज के अंगों का दान करने का साहसी निर्णय लिया। उनके इस निर्णय में उनके परिवार और काउंसलिंग टीम ने उनका पूरा सहयोग किया। आवश्यक कार्यवाही पूरी हो जाने के बाद मरीज के लिवर और किडनी को नोट्टो (नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाईज़ेशन) को आवंटित कर दिया गया। मरीज के हृदय और फेफड़े ट्रांसप्लांट किए जाने के योग्य नहीं थे। मरीज का लिवर एक 61 वर्षीय पुरुष के शरीर में तथा किडनी एक 52 वर्षीय पुरुष के शरीर में लगाए गए। ये दोनों प्रक्रियाएं एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल, द्वारका में की गईं। दूसरी किडनी दिल्ली के एक अन्य निजी हॉस्पिटल में एक 59 वर्ष की महिला को लगा दी गई।
मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसीन के चेयरमैन, डॉ. श्रीकांत श्रीनिवासन ने कहा, ‘‘डॉक्टरों की पूरी कोशिश के बाद भी मरीज की हालत में सुधार नहीं हुआ और उन्हें 12 मई, 2025 को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। इस भारी दुख के बीच भी परिवार ने मरीज के अंगों को दान करने का साहसी निर्णय लिया, जिससे अन्य जरूरतमंदों की जान बचाने में मदद मिली। इतने मुश्किल समय में उनकी शक्ति और उदारता प्रेरणाप्रद है। यह व्यक्ति के जीवन द्वारा अन्य जिंदगियों पर पड़ने वाले प्रभाव का उदाहरण है।’’
डॉ. (कर्नल) अवनीश सेठ, वीएसएम, हेड, मणिपाल ऑर्गन शेयरिंग एंड ट्रांसप्लांट (एमओएसटी) ने कहा, ‘‘अंगदान एंड-ऑफ-लाईफ केयर का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। जब परिवारों को पूरी तरह से विश्वास होता है कि उनके प्रियजन को सर्वश्रेष्ठ इलाज दिए जाने के बाद भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी, तभी वो लोग अन्य लोगों के लिए कुछ करने पर विचार करते हैं। यहाँ पर विश्वास की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अंगों के आवंटन में प्रतीक्षा सूची के अनुसार पारदर्शिता, जैसा हमारे देश में नोट्टो द्वारा किया जा रहा है, से परिवार को सही निर्णय लेने के लिए काफी आत्मविश्वास मिलता है। परिवार के इस उदारतापूर्ण कार्य से तीन लोगों की जान बच सकी। यही मनुष्यता की सच्ची भावना है। ये मरीज अब आगे भी जीवित रहेंगे।’’
भारत में ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध अंगों और ट्रांसप्लांट कराने के जरूरतमंदों के बीच बहुत बड़ा अंतर है। हर साल लगभग 1.8 लाख लोगों की किडनी फेल हो जाती है, जबकि 2023 में केवल 13,426 किडनी ट्रांसप्लांट ही किए जा सके। भारत में हर साल लगभग 25,000 से 30,000 लोगों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है, लेकिन 2023 में केवल 4,491 लोगों का ही लिवर ट्रांसप्लांट हो सका। इसी प्रकार, हार्ट फेल का शिकार हुए कई हजार लोगों में से केवल 221 लोगों का ही हार्ट ट्रांसप्लांट हो सका। कॉर्निया का ट्रांसप्लांट कराने की जरूरत हर साल लगभग 1 लाख लोगों को होती है, पर लगभग 25,000 ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं।
अंगदान के इस महान कार्य से भारत में अंगदान किए जाने की गंभीर जरूरत प्रदर्शित होती है। यहाँ पर अंगदान का इंतजार कर रहे मरीजों और अंगों की उपलब्धता के बीच बहुत बड़ा अंतर है। बढ़ती जागरुकता और अंगदान में हिस्सेदारी की मदद से इस अंतर को दूर किया जा सकता है और अनेकों जरूरतमंदों को नया जीवन प्रदान किया जा सकता है।