जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । विपक्ष के हंगामे के बीच मानसून सत्र को सही तरीके से चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन बृहस्पतिवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। अब तक लोकसभा में विपक्ष द्वारा विभिन्न मुद्दों को उठाये जाने के कारण कामकाज बाधित रहा है । यह बैठक ऐसे समय में हो रही है कि जब अध्यक्ष के बार बार मना किए जाने के बावजूद कांग्रेस के सदस्य तख्तियां लेकर आसन के समीप आकर नारेबाजी करते हैं। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के कई और नेताओं और गांधी परिवार के करीबियों पर जांच एजेंसियों की घेरा कस रहा है। जिसके कारण कांग्रेस की परेशानी और बढ़ने वाली है।
दरअसल संसद में जो चल रहा है उसके पीछे मुद्दे कम नेताओं के अहम ज्यादा हैं । गांधी परिवार अभी तक इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर पाया है कि अब सत्ता के सूत्र उसके हाथ में नहीं है। मोदी से सोनिया की खुन्नस बहुत गहरी है। सोनिया गांधी और राहुल के लिए ललित गेट और व्यापम घोटाला नरेन्द्र मोदी को झुकाने का एक सुनहरा अवसर नजर आ रहा है। यह अवसर केवल मोदी को झुकाने का ही नहीं, उनकी विकास की योजना को पटरी से उतारने का भी है। इसलिए कांग्रेस संसद का यह सत्र चलने नहीं देना चाहती।
यह कहना मुश्किल है कि अगर ललित गेट और व्यापम का मुद्दा न होता तो क्या संसद का मानसून सत्र कांग्रेस चलने देती। संसद के बजट सत्र में जीएसटी और भूमि अधिग्रहण विधयेक कांग्रेस ने पास नहीं होने दिया। भूमि अधिग्रहण पर तो बाकी विपक्ष उसके साथ था पर जीएसटी कांग्रेस के हठ से राज्यसभा की प्रवर समिति को गया। यह विधेयक लोकसभा पास कर चुकी है। कांग्रेस की यह तय नीति है कि वह इस सरकार को किसी विधायी कार्य में सहयोग नहीं करेगी। जिसे वह लोकसभा चुनाव के मैदान में नहीं रोक पाई उसे राज्यसभा में अपने संख्या बल से रोकने की कोशिश कर रही है। उसे पता है कि कोई भी संविधान संशोधन विधेयक उसके सहयोग के बिना राजयसभा से पास नहीं हो सकता। क्योंकि उसके लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। इस समय कांग्रेस के राज्यसभा में 68 सदस्य हैं। दस सदस्य नामजद हैं। वाम दलों के दस सदस्य हैं और चार सदस्य द्रविड़ मुनेत्र कषगम के हैं। ये कुल मिलाकर 92 सदस्य हैं। सरकार को दो तिहाई बहुमत जुटाने से रोकने के लिए केवल 83 वोटों की जरूरत है। यही कांग्रेस की ताकत है।
बताया जाता है कि सोनिया गांधी को समझ में आ गया है कि नरेन्द्र मोदी अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हैं। मोदी कांग्रेस के साथ नरमी का बर्ताव नहीं करने वाले हैं। कांग्रेस को इस सच्चाई का पहला एहसास हुआ लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर। कांग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद मोदी सरकार कांग्रेस को उपकृत करने के तैयार नहीं हुई। सोनिया गांधी यह बात भूल नहीं पा रही हैं।
सोनिया और राहुल गांधी की मोदी सरकार के प्रति तल्खी का दूसरा कारण है राबर्ट वाड्रा का मामला। राजस्थान और हरियाणा में भाजपा की सरकारों ने वाड्रा के जमीन सौदों की जांच शुरु कर दी है। इस सबंध में राजस्थान की पुलिस कई गिरफ्तारियां भी कर चुकी है। जांच का नतीजा जल्दी ही सामने आने वाला है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के कई और नेताओं और गांधी परिवार के करीबियों पर जांच एजेंसियों की घेरा कस रहा है । कांग्रेस को लग रहा है कि वह जितना नीचे पहुंच गई है उससे ज्यादा नीचे नहीं जा सकती है। ऐसे में उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है।
मानसून सत्र चले या न चले पर उसके बाद सबका ध्यान बिहार विधानसभा चुनाव पर होगा। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आगे की राजनीति की दिशा तय करेंगे। कांग्रेस के रणनीतिकारों की नजर यूपीए-दो के दौरान विपक्षी दल के रूप में भाजपा के व्यवहार पर है। उन्हें लग रहा है कि गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के बावजूद भाजपा को चुनाव में कामयाबी मिली। वे भूल रहे हैं कि 2004 से 2009 के बीच ऐसे ही व्यवहार के लिए मतदाता ने 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सजा दी थी। 2010 से 2014 के बीच के भाजपा के व्यवहार का उसे इसलिए नुक्सान नहीं हुआ क्योंकि मनमोहन सरकार की साख चुनाव आते आते रसातल में पहुंच चुकी थी। उस समय लोग मनमोहन सरकार के खिलाफ सच ही नहीं झूठ भी सुनने और उस पर यकीन करने को तैयार थे। उस समय की तुलना आज के समय से नहीं की जा सकती। यह सही है कि 2014 के चुनाव नतीजों के समय नरेन्द्र मोदी की जो लोकप्रियता थी उसमें कुछ हद तक गिरावट आई है। लेकिन लोगों का भरोसा टूटा नहीं है। कांग्रेस सरकार के रास्ते में रोड़े अटकाकर मोदी सरकार के खिलाफ संभावित नाराजगी को कम ही कर रही है।
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