जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। पिछले लगभग डेढ़ वर्षों में कोविड -१९ महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने देश और दुनिया भर में मोटापा से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में अतिशय वृद्धि की है और यह एक जटिल समस्या के रूप में सामने आया है। घर बैठे ऑनलाइन कक्षाओं, बैठकों, वेबिनार, और अन्य क्रिया कलापों की आभासी पटल पर उपलब्धता के चलते बहुत से लोग मोटापे के शिकार हुए हैं। इसकी मुख्य वजह घर पर दिन में अनियंत्रित खानपान की उपलब्धता और आदत, शारीरिक श्रम की कमी, होम ऑफिस होने से असमय और लगातार कार्य की चिंता, रोजगार की अनिश्चितता, मानसिक तनाव और सहरूग्णता हो सकती है।
मोटापा कोरोना के लिए आग में घी जैसा :
एक तरफ जहाँ लॉकडाउन के चलते विश्व भर में मोटापा बढ़ा है, दूसरी ओर कोरोना का घातक असर मोटापा और उससे सम्बंधित सहरूग्णताओं (कोमार्बिडीटी) से पीड़ित रोगियों में अधिक पाया गया है। सामान्य वजन के स्वस्थ लोगों के मुकाबले मोटे लोगों में कोरोना संक्रमण से होने वाले कोविड रोग की तीव्रता और इससे होने वाली मृत्यु दर अधिक पायी गयी है। ऐसे में मोटापा चिंताजनक रूप से महामारी को बढ़ाने में आग में घी की तरह काम कर रहा है। इसके अलावा पिछले कुछ दशकों में मोटापे से जुड़ी बहुत सी बीमारियों का पता चला है जैसे कि ह्रदय रोग, मधुमेह, किडनी की बीमारियां और कैंसर इत्यादि जो पहले अपने आप में स्वतंत्र रूप से घातक मानी जाती थीं।
मोटापा जनसांख्यिकी :
अमेरिकन मनोविज्ञान संघ के द्वारा कराये हाल के सर्वे से पता चला है की वहां महामारी के दौरान ४२ प्रतिशत लोगों के वजन में अनचाही वृद्धि देखी गयी है जो कि औसतन लगभग १३ किलो तक थी। यह वृद्धि भारत में भी हुए कई सर्वे में देखि गयी है। कोविड के चलते लगे आवागमन के प्रतिबन्धों ने लोगों को घर पर रहने के लिए मजबूर किया जिससे लोगों में वजन बढ़ने की शिकायतें बढ़ी। वैसे भी मोटापा अपने आप में एक वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार विगत ४० वर्षों में दुनिया में मोटापा तीन गुना तक बढ़ा है। वर्ष २०१६ में दुनिया में १.९ अरब लोग (१८ वर्ष से अधिक उम्र) अधिक शारीरिक वजन से ग्रस्त थे और लगभग ६५ करोड़ लोग मोटापे से पीड़ित थे। भारत में १९९८ से २०१५ के बीच अधिक वजन वाले लोगों की संख्या ८.४ प्रतिशत से लगभग दो गुना बढ़ कर १५.५ प्रतिशत हो गयी। इसी दौरान मोटापा २.२ से बढ़ कर ५.१ प्रतिशत हो गया। इनके साथ यहाँ की जनसांख्यिकी और जनस्वास्थ्य सम्बन्धी बदलाव भी देखे गए। जहाँ पहले संक्रामक रोगों से ज्यादा मृत्यु होती थी, पिछले दो ढाई दशकों में असंक्रामक रोगों जैसे कि ‘लाइफ स्टाइल डिजीज’ से अधिक लोग पीड़ित हुए हैं।
इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च में छपे एक अध्ययन के अनुसार २०१० में अधिक वजन और मोटापे की समस्या १९.३ प्रतिशत बच्चो में पायी गयी जिसका आगे और बढ़ने का संकेत दिया गया है। लॉकडाउन के दौरान भी बच्चों में वजन बढ़ने की शिकायतें देखि गयीं हैं। घर बैठे ऑनलाइन कक्षायें और उनके खेल कूद पर रोक इसकी प्रमुख वजहें हैं। महामारी से पहले भी बच्चों में बढ़ता मोटापा एक समस्या एक समस्या के रूप में मौजूद थी। इसका त्वरित समाधान ढूढना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह देश की जनांकिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) के लिए विशेष खतरा है।
मोटापा का कारण :
बढ़ते मोटापे के लिए वैसे तो कई वजहें गिनाई जाती हैं, परन्तु मुख्य रूप से इसके लिए महामारी के समय लगे प्रतिबन्धों की वजह से दिनभर बैठ कर कार्य करना और श्रमयुक्त कार्यों की कमी है। इनके अलावा मशीनीकरण, नयी सूचना, संचार और आवागमन की प्रौद्योगिकी का प्रसार, वैश्वीकरण आदि सामाजिक और आर्थिक कारण हैं। दूसरी तरफ खान-पान में अधिक ऊर्जा वाले त्वरित खाद्य पदार्थ (फ़ास्ट फ़ूड) का अक्सर और किसी भी समय सेवन, आराम तलब दिनचर्या, आगे निकलने की होड़ और उससे उपजा मानषिक तनाव जैसे व्यक्तिपरक कारण भी हैं। शारीरिक श्रम की कमी के कारण जितनी ऊर्जा का सेवन हम करते हैं उससे बहुत कम खर्च कर पाते हैं जिससे शरीर में ऊर्जा का संतुलन बिगड़ जाता है। बची हुयी ऊर्जा शरीर में एकत्र होकर धीरे-धीरे मोटापे का कारण बनती है। कुछ व्यक्तियों में मोटापा वंशानुगत भी हो सकता है, परन्तु उपर्युक्त कारणों की वजह से समस्या और बढ़ सकती है। ज्यादातर बच्चों में भी मोटापा बढ़ने का कारण असमय खानपान की गलत आदत, त्वरित खाद्य पदार्थों का बढ़ता चलन, खेल कूद के बजाय स्मार्टफोन, कम्प्यूटर्स और वीडियो गेम का अधिक उपयोग प्रमुख हैं।
निवारण के उपाय:
जो अभी स्वस्थ हैं और आने वाले समय में मोटापा व इससे संबंधित रोगों से बचना चाहते हैं उन्हें अभी से प्रयास करना होगा। वैसे तो धीरे-धीरे प्रतिबंधों में ढील दी जा रही है, परन्तु प्रतिबंधों के दौरान भी दिनचर्या नियमित करें, नियम से सुबह सूर्योदय के साथ उठें जिससे शरीर की जैव घड़ी प्राकृतिक चक्र के अनुसार चले, नास्ते का और दिन तथा रात का भोजन संतुलित हो और समय पर हो, असमय और असीमित भोजन करने से बचें, प्रतिदिन कम से कम एक घंटे का शारीरिक श्रम अवश्य करें, यदि बैठ कर काम ज्यादा करते हैं तो हर कुछ देर में उठ कर टहलें और स्ट्रेचिंग करें। मानषिक स्वस्थ्य के लिए प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करें, हरी सब्जियों और गाढ़े रंग के फलों का सेवन करें। बच्चों को समय समय पर शारीरिक श्रम और व्यायाम के लिए प्रोत्साहित करें। स्कूल खुलने पर पाठ्यक्रम में शारीरिक व्यायाम शामिल होना ही चाहिये, परन्तु दो कक्षाओं के बीच में भी १० मिनट का समय देकर उन्हें स्कूल के प्रांगढ़ में ही कुछ देर चलने का भी प्रबंध करना चाहिए। मानसिक तनाव को कम करने और इससे निपटने का उपाय भी बच्चों को स्कूल में सिखाया जाना चाहिए जिससे वे आने वाले समय में तनाव का सामना अच्छी तरह से कर सकें।
कब चिकित्सीय सलाह आवश्यक? :
जिनका वजन इन उपायों से भी कम नहीं हो रहा है उन्हें चिकित्सीय सलाह अवश्य लेनी चाहिए। समय समय पर अपने स्वास्थ्य की जाँच चिकित्सक के परामर्श से करें जिसमें लम्बाई के अनुपात में वजन (बॉडी मास इंडेक्स), डायबिटीज (ग्लूकोज और एचबी. ए१सी), रक्त में वसा का स्तर (लिपिड प्रोफाइल), यकृत और किडनी के कार्य की समय समय पर जांच शामिल हैं। ये जांचें मोटापा और इससे संबंधित बीमारियों से सचेत व बचे रहने का सहज उपाय हैं।
बहुत ज्यादा वजन बढ़ने पर डॉक्टर अंतिम उपाय के तौर पर शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की सलाह देते हैं। इसमें गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी या वर्टिकल बांडेड गैस्ट्रोप्लास्टी शल्य चिकित्सा के प्रमुख प्रकार हैं। इसमें रोगी के आमाशय को छोटा कर दिया जाता है जिससे रोगियों को लाभ होता है।
अंततः
मोटापे की समस्या हमारे समाज में अभूतपूर्व गति से बढ़ रही है। कोरोना से न केवल मोटापे में वृद्धि हुई है बल्कि कोरोना के रोगियों में यह घातक भी सिद्ध हुआ है। मोटापे की वजह से बहुत लोगों में जीवन शैली से जुड़े रोग बढ़े हैं। मधुमेह व हृदय रोगियों की संख्या भी इसी अनुपात में बढ़ी है। भारत को मधुमेह की राजधानी तो कहा ही जाने लगा है, अब यहाँ मोटापे की वजह से हृदय रोग, कैंसर व अन्य मेटाबोलिक रोगों से पीड़ितों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ने लगी है। अतः समय रहते हमें जागरूक और सचेत होना होगा। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मोटापे से बचाव और निदान के उपायों की जानकारी पहुंचाने की जरूरत है जिससे एक स्वस्थ और जागरूक समाज का निर्माण हो और देश की युवा शक्ति देश निर्माण में अपना सहयोग दे सके न कि मोटापे से बीमार होकर देश पर ‘भार’ बने।
(इस लेख का उद्देश्य चिकित्सकीय सलाह देना नहीं है।)