जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। गुजरात ,राजस्थान समेत करीब 15 राज्यों में गौवंश के लिए कहर बन रही बीमारी लंपी को रोका नही गया तो, पशुओं के गर्भ में पल रहे बच्चे को बचाना मुश्किल हो जाएगा। यह कहना है बिहार सरकार से अवकाश प्राप्त क्षेत्रिय निदेशक और वरिष्ठ पशु चिकित्सक डा. अजय कुमार चौधरी का। वकौल चौधरी यह बीमारी अमूमन भेड़ और बकरी के बीच देखा जा रहा था, मगर अचानक गौवंश के बीच आना चिंता का विषय बन गया है। उनका मानना है जब तक इस बीमारी की समुचित दवा नही आती है, तबतक गौशाला की साफ- सफाई, संक्रमित जानवर को अलग ही रखें। इतना ही नहीं मृत मवेशी को सही तापमान पर जलाए जाने का बंदोबस्त कर कुछ हद तक इस संक्रमण को रोका जा सकता है।
बीमारी लंपी होने का कारण यह भी
डा चौधरी ने बताया की एक शोध में यह पाया गया है कि बीमारी लंपी दुनिया भर में पशुधन के लिए एक उभरता हुआ खतरा है। रोग कॉपरीपॉक्सवायरस नामक वायरस के कारण होता है। यह आनुवंशिक रूप से गोटपॉक्स और शीपपॉक्स वायरस परिवार से संबंधित है। एलएसडी मवेशियों और जल भैंसों को मुख्य रूप से रक्त-पान करने वाले कीड़ों जैसे वैक्टर के माध्यम से संक्रमित करता है। संक्रमण के लक्षणों में जानवर की खाल या त्वचा पर गोलाकार, फर्म नोड्स की उपस्थिति शामिल होती है जो गांठ के समान दिखती है। संक्रमित जानवरों का बजन कम होना शुरू हो जाता है और दूध का उत्पादन भी कम होने लगाता है। पशुओं को बुखार और मुंह में घाव हो जाता है। इसके अतिरिक्त अत्यधिक नाक से रक्त और लार स्राव होने लगता है। गर्भवती गायों और भैंसों का अक्सर गर्भपात हो जाता है और कुछ मामलों में इसके कारण रोगग्रस्त पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है।
रोग के प्रसार को रोकने का तरीका
टीका मिलने के बाद तेजी से और व्यापक टीकाकरण अभियान पर निर्भर करता है। लेकिन अमूमन बकरी और भेड़ के बीच चेचक को रोकने के लिए टीका बना हुआ है, उस टीके को ऐहतिहात के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है। हलांकि डा. चौधरी का कहना है कि गौवंश पर इस टीका का प्रभाव शत-प्रतिशत होगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगा। लेकिन संक्रमण जरूर कम करेगा। लेकिन जबतक टीका नही मिलता है, तबतक उन्हें कीटनाशकों के आवेदन और कीटाणुनाशक रसायनों के छिड़काव के माध्यम से वैक्टर को खत्म करके पशु-शेड को साफ करना चाहिए। उन्हें संक्रमित मवेशियों को तुरंत उसके झूंड व परिवार से से अलग करना चाहिए। इसके अलावा एक और चुनौती है कि मृत जानवरों का निपटान। शवों के उचित निपटान में परिसर की कीटाणुशोधन के साथ-साथ उच्च तापमान पर शवों को जलाना शामिल हो ।