जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । 91.4 प्रतिशत भारतीय चाहते हैं कि पैकेटबंद खाद्य पदार्थों पर अनिवार्य चेतावनी (फ्रंट ऑफ पैकेज लेबलिंग) की व्यवस्था शुरू की जाए। एक ऑनलाइन सर्वे में यह बात सामने आई है। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि खतरे के बारे में साफ चेतावनी उपभोक्ताओं को सबसे उपयोगी लगी है। ऐसी व्यवस्था में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में वसा, नमक या चीनी की मात्रा अधिक हो तो पैकेट के ऊपर (सामने) स्पष्टता और प्रमुखता से ‘वसा/नमक/चीनी ज्यादा है’ (high-in fat/salt/sugar) लिखा होना चाहिए।
इस ऑनलाइन सर्वे में 20 हजार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया और अपनी राय जाहिर की। उनका मानना है कि उपभोक्ताओं की पसंद का ध्यान रखते हुए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) फूड लेबलिंग के बहुप्रतीक्षित मसौदा विनियमन को समय पर जारी करे। यह पूछे जाने पर कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से निर्धारित सीमा से अधिक वसा, नमक और चीनी के स्तर को दर्शाने वाले चेतावनी लेबल से क्या वे खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे, सर्वे में शामिल 99 प्रतिशत लोगों ने इसका जवाब “हां” में दिया। इसके अलावा, 95 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि फूड पैकेट्स पर दिए गए चेतावनी लेबल में वसा, नमक और चीनी की मात्रा को स्पष्ट रूप से दर्शाया जाए। डब्ल्यूएचओ ने उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में वसा, चीनी और नमक की वैज्ञानिक सीमा निर्धारित की है।
यह ऑनलाइन सर्वे 2 से 6 जुलाई, 2022 तक किया गया जिसमें 22,647 लोगों ने हिस्सा लिया। ट्विटर पर किए गए इस सर्वे में अंग्रेजी और हिंदी दोनों में सवाल पूछे गए थे। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि सही एफओपीएल के पक्ष में मजबूत जन समर्थन है।
पैकेट पर चेतावनी यानी एफओपीएल व्यवस्था सरल और प्रभावी हो तो यह उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सर्वे करवाने वाले गैर सरकारी संगठन इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस, पॉलिसीज एंड पॉलिटिक्स (IGPP) के डायरेक्टर श्री मनीष तिवारी का कहना है, “डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर स्पष्ट चेतावनी लेबल का मकसद उपभोक्ताओं को उनमें मौजूद चीनी, नमक और संतृप्त वसा की मात्रा से अवगत कराना है। इस कदम से उपभोक्ता अस्वस्थकर खाद्य पदार्थों के सेवन के प्रति हतोत्साहित हो सकते हैं।”
यह ज्ञात तथ्य है कि चिंताजनक पोषक तत्व- जैसे कि ज्यादा चीनी, नमक, संतृप्त वसा और अतिरिक्त ट्रांस-वसा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इन चिंताजनक पोषक तत्वों वाले खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों के ज्यादा सेवन से न केवल मोटापा बल्कि कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक और डयबिटीज होता है। साथ ही अकाल मौत का खतरा भी बढ़ जाता है। वर्ष 2021 की ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट के मुताबिक, असंतुलित और अस्वस्थकर भोजन के साथ-साथ गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) से जुड़े जोखिम वाले आहार की वजह से वर्ष 2018 में लगभग 1.2 करोड़ लोगों की अकाल मौत हुई।
भारत भी डायबिटीज और मोटापे सहित एनसीडी में खतरनाक वृद्धि का सामना कर रहा है। यह देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ बढ़ा रहा है। भारत के लगभग 1.5 करोड़ बच्चे मोटापे से पीड़ित हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में सालाना लगभग 58 लाख लोगों की मौत निवारक गैर संक्रामक रोगों (जिसे होने से रोका जा सकता है) की वजह से हो जाती है।
आईजीपीपी की ओर से “ स्वास्थ्य पर पैकेज्ड फूड्स का प्रभाव और चेतावनी व्यवस्था” विषय पर हाल ही में आयोजित एक गोलमेज चर्चा में शामिल संसद सदस्यों और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के डॉक्टरों ने स्वीकार किया कि भारत में एनसीडी को कम करने में सही एफओपीएल की रणनीतिक भूमिका हो सकती है। डब्ल्यूएचओ भी इस बात के समर्थन में है कि फ्रंट ऑफ पैक लेबल को अनिवार्य बनाया जाए। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर ऐसे लेबल लगाए जाएं जो समझने में सरल और पढ़ने लायक दिखने वाले हों।