जनजीवन ब्यूरो /नई दिल्ली : दुनियां के बहुत देशों में खाद्य पदार्थों के पैकेटों पर उत्पाद से संबंधित जानकारी पैकेट के अगले हिस्से में रहती है जबकि भारत में अबतक इसके लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई है। एफ.एस.एस.ए.आई. (FSSAI) ने पहले से पैक किए गए खाद्य उत्पादों के फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (पैकेट के सामने वाले हिस्से पर लेबल लगाना) के लिए जनता की टिप्पणियों के लिए एक मसौदा तैयार किया है। यदि मसौदे को पर्याप्त रूप से नहीं बदला गया तो वांछित उद्देश्य को पाने की संभावना नहीं है। न्यूट्रीशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट ने कहा है कि वर्षों से फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग की मांग की जा रही है लेकिन अब तक इस ओर कदम नहीं उठाया गया है।
ठोस वैज्ञानिक प्रमाण इंगित करते हैं कि पूर्व-पैक किए गए खाद्य उत्पाद (जो आम तौर पर औद्योगिक फॉर्मूलेशंस हैं और उनकी मार्केटिंग की जाती है) किसी के आहार में नमक / चीनी या संतृप्त वसा सामग्री को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। चाहे ये उत्पाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निर्मित हों या स्थानीय कंपनियों द्वारा, ऐसे खाद्य उत्पादों का बढ़ता उपभोग सीधे तौर पर मोटापे, टाइप -2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, पुराने किडनी रोग, कैंसर और प्रतिकूल मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा होता है।
हाल के साक्ष्य माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभावों की ओर इशारा करते हैं। नवीन अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि भारतीय किशोर-किशोरियों में उच्च रक्तचाप का प्रचलन काफी अधिक (तीन में से एक) है और उसका अन्य हृदय रोग के जोखिम संबंधी कारकों के साथ सह-अस्तित्व रहता है। जाहिर है कि चीनी, नमक, या संतृप्त वसा में उच्च मात्रा वाले खाद्य पदार्थों के उपयोग में कमी लाने के लिए पहल की जरूरत है।
कंज्यूमर वॉयस के सी. इ. ओ. (CEO) आशिम सान्याल का कहना है कि उच्च मात्रा में सोडियम, पूर्ण शुगर और पूर्ण वसा के केंद्र-बिंदु पर टिके रहने से, फ्रंट ऑफ पैक लेबल उद्योग को अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के नियमों के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। चेतावनी लेबल ग्राहकों को स्वस्थ विकल्प बनाने और भारत में आहार से संबंधित बीमारी की रोकथाम में योगदान करने के लिए भी सशक्त बनाएंगे। उन्होंने आगे कहा- एफ.एस.एस.ए.आई पूरी तरह से आई.आई.एम. रिपोर्ट पर निर्भर करता है। प्रमुख विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट के तरीकों और व्याख्या की आलोचना की है।
फोर्टिस हॉस्पिटल, लुधियाना में वरिष्ठ सलाहकार के तौर पर कार्यरत और पंजाब के जाने-माने नेफ्रोलॉजिस्ट (वृक्क विज्ञानी) डॉ. नवदीप सिंह खैरा ने कहा- ‘मैं इस समस्या पर एक साल से ज्यादा समय से पैनी नज़र रखे हुए हूं। आर.टी.आई. (सूचना के अधिकार) की जानकारी के आधार पर मैं यह देख कर बहुत निराश हूं कि आई.आई.एम.(IIM) की रिपोर्ट पर एफ.एस.एस.ए.आई (FSSAI). ने अपना भरोसा जारी रखा है और वह अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों पर ‘स्टार्स’ का हिमायती है। एफ.एस.एस.ए.आई.(FSSAI) ने न सिर्फ आई.आई.एम. (IIM) के शोधकर्ताओं को एच.एस.आर. (HSR) के प्रति पक्षपात किया , बल्कि उसने आई.आई.एम.(IIM) रिपोर्ट के विश्लेषण करने का भी प्रयास नहीं किया। इसका निहितार्थ, एफ.एस.एस.ए.आई (FSSAI). द्वारा पूर्व-निर्धारित परिणाम है, जो सभी अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों के लिए स्टार रेटिंग लाता है।“
एफ.एस.एस.ए.आई. के एक वैज्ञानिक पैनल के एक सदस्य, जो गुमनाम रहना चाहते हैं, ने पुष्टि की कि “आई.आई.एम (IIM). के अध्ययन के परिणाम स्टेकहोल्डर्स (हितधारकों) की बैठक में हमारे साथ साझा किए गए थे और हमें एच.एस.आई (HSI). के साथ आगे बढ़ने के लिए कहा गया। हमें कभी भी आई.आई.एम (IIM). की रिपोर्ट का विश्लेषण करने का मौका नहीं दिया गया।“
कंज्यूमर वॉयस के सी. इ. ओ. (CEO) आशिम सान्याल का कहना है कि उच्च मात्रा में सोडियम, पूर्ण शुगर और पूर्ण वसा के केंद्र-बिंदु पर टिके रहने से, फ्रंट ऑफ पैक लेबल उद्योग को अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के नियमों के साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे। चेतावनी लेबल ग्राहकों को स्वस्थ विकल्प बनाने और भारत में आहार से संबंधित बीमारी की रोकथाम में योगदान करने के लिए भी सशक्त बनाएंगे। उन्होंने आगे कहा- एफ.एस.एस.ए.आई पूरी तरह से आई.आई.एम. रिपोर्ट पर निर्भर करता है। प्रमुख विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट के तरीकों और व्याख्या की आलोचना की है
देश के एक वरिष्ठ महामारी विज्ञानी प्रोफेसर हर्ष पाल सिंह सचदेव ने कहा- “यह आश्चर्यजनक है कि खाद्य पदार्थों के जोखिम कारक ‘चीनी’ को ठोस खाद्य उत्पादों में 21 ग्राम प्रति 100 ग्राम पर रखा गया है, जो कि एशिया सहित कई क्षेत्रों में खाद्य उत्पादों के लिए अच्छी तरह से शोधित पोषक तत्व प्रोफाइल पर आधारित डब्ल्यू.एच.ओ. के दिशा-निर्देशों से कहीं अधिक है। एफ.एस.एस.ए.आई (FSSAI). को खाद्य उत्पादों संबंधी जोखिम कारकों की पहचान करने के लिए डब्ल्यू.एच.ओ (WHO). के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए था। इसके बाद वह लोगों को खाद्य उत्पादों संबंधी जोखिम कारकों के बारे में सीधे, सही मायने में और सरलता से सूचित करने की अपनी रणनीति पर फिर से विचार कर सकता है।
पोषण नीति पर एक राष्ट्रीय थिंक टैंक- द न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एन.ए.पी.आई NAPi) ने दृढ़ता से सुझाव दिया कि विनियमन को संशोधित किया जाना चाहिए। एन.ए.पी.आई (NAPi) के संयोजक डॉ. अरुण गुप्ता ने कहा- “इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि एक अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पाद में सकारात्मक कारक या पोषक तत्व, जैसे, सब्जी / फल / मेवा आदि डालने से बीमारी का खतरा कम होगा। शरीर का मेटाबॉलिज्म उस तरह से काम नहीं करता है। न तो मेवे/फल/फलियां अस्वास्थ्यकर उत्पाद में चीनी/नमक या वसा के अवशोषण को कम कर सकते हैं और न ही इसके नकारात्मक प्रभाव में कमी ला सकते हैं।”
अनुपालना के लिए 4 साल का समय देना अत्यधिक हास्यास्पद है। यह गैर-संचारी रोगों की महामारी से निपटने के लिए तात्कालिकता की कमी को दर्शाता है। यह उसी खाद्य उत्पाद को शीर्ष पर “स्टार” देने के संबंध में खाद्य उद्योग के लिए एक आसान कदम प्रतीत होता है, जो न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में गैर-संचारी रोग की बढ़ती महामारी/स्थानिक महामारी के लिए जिम्मेदार है। दुनिया के ज्यादातर देशों ने स्टार रेटिंग को खारिज कर दिया है। विशेषज्ञों ने सवाल किया है- क्या हम यही छह महीने में नहीं कर सकते?
एन.ए.पी.आई (NAPi) की सदस्य और एक सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवर डॉ. वंदना प्रसाद ने बताया कि “यह देखते हुए कि खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम, 2020 में और संशोधन करने के लिए कुछ नियमों का मसौदा लोगों के स्वास्थ्य के हित में लाया जा रहा है। इसमें “न्यूनतम स्वस्थ से सर्वाधिक स्वास्थ्यकर” तक खाद्य पदार्थों की रेटिंग करने का मूलभूत अवधारणात्मक दोष है और खाद्य पदार्थों के खिलाफ चेतावनी घोषित करने के बजाए उन सकारात्मक पोषक तत्वों की धारणा शामिल की जा रही है, जो कि स्पष्ट रूप से अस्वास्थ्यकर के रूप में स्वीकार किए जाते हैं। उदाहरणार्थ, चिप्स का एक पैकेट या शक्करयुक्त सोडा की एक बोतल को भी कुछ हद तक स्वास्थ्यकर माना जाएगा। इसके अलावा, फल, मेवा या फाइबर जैसे कुछ सकारात्मक पोषक तत्वों का सांकेतिक जोड़ स्वास्थ्य पर उनके प्रतिकूल प्रभाव को कम किए बिना उनकी रेटिंग को काफी हद तक बढ़ा सकता है। एफ.ओ.पी.एल. के किसी भी रूप के खिलाफ खाद्य उद्योग की उग्र प्रतिक्रिया इस तथ्य का प्रमाण है कि यह अपने बड़े मुनाफे के लिए अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के उपभोग पर निर्भर करता है। यह मसौदा यह सवाल उठाता है कि क्या एफ.एस.एस.ए.आई (FSSAI) खाद्य पदार्थों के उत्पादों के हितों या उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए है? यहां तक कि एच.एफ.एस.एस (HFSS) की परिभाषा मसौदे के मुख्य भाग के बीच विरोधाभासी है, जो डब्ल्यू.एच.ओ (WHO) के मानक और अनुसूची-III को स्वीकार करती है, जो कि डब्ल्यू.एच.ओ.के मानक की तुलना में चीनी की सीमा दोगुनी बढ़ाती है। यह दुःखद है कि एफ.एस.एस.ए.आई (FSSAI) ने इस मसौदे के जारी होने से पहले सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में लोगों से व्यापक विचारों को प्राप्त नहीं किया।”
जी-20 समूह की अध्यक्षता के साथ भारत मानवता के सामने इस सबसे अधिक दबाव वाले मुद्दे को हल करने के लिए एक नेता के रूप में उभर सकता है और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जी-20 देशों को दर्शाने के लिए मजबूत नीतियां विकसित कर सकता है। वैश्विक स्वास्थ्य की चुनौतियों से निपटने के लिए ‘चेतावनी लेबल’ और अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों की मार्केटिंग पर रोक लगाना सार्थक हो सकता है। इस बारे में ब्राजील एवं इज़रायल, मैक्सिको, चिली और अनेक लैटिन अमेरिकी देशों ने प्रतिबद्धता दर्शाई है। ऐसे खाद्य उत्पादों के उपभोग में कमी लाने के लिए नीतियां होने से आबादी की आहार संबंधी आदतों पर असर पड़ेगा और पारंपरिक आहार का संरक्षण होगा।