जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। 2014 के मुकाबले 2019 में उनके वोट और वोट शेयर दोनों में जबर्दस्त उछाल आया था।
वाराणसी लोकसभा सीट का जातीय और धार्मिक समीकरण समझना जरूरी है और पिछले चुनावों का ट्रैक रिकॉर्ड भी देखना आवश्यक है। वाराणसी में बीजेपी 2004 से लगातार जीत रही है और हर चुनाव में उसका प्रदर्शन बेहतर होता गया है। पीएम मोदी से पहले पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी 1977 में इसका प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, लेकिन उन्हें पीएम बनने में उसके बाद ढाई दशक लग गए थे। वाराणसी में पिछले दो चुनावों में पीएम मोदी का प्रदर्शन 2014 में प्रधानमंत्री मोदी को वाराणासी में 5,81,022 वोट (56.37%) मिले थे और उन्होंने आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को हराया था, जिन्हें सिर्फ 2,09,238 (20.30%) वोट मिले थे। 2019 में प्रधानमंत्री मोदी को 6,74,664 (63.6%) वोट मिले और उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव को 1,95,159 (18.4%) प्राप्त हुए थे।
वाराणसी यूपी की उन 11 लोकसभा सीटों में शामिल है, जहां समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी एक भी चुनाव नहीं जीत सकी है। इस बार कांग्रेस पार्टी की ओर से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय यहां से कांग्रेस और सपा के इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार हैं। वहीं बसपा ने अतहर अली लारी को टिकट दिया है।
वाराणसी सीट पर हिंदू वोटरों का दबदबा
वाराणसी लोकसभा सीट पर हिंदू मतदाताओं की संख्या 84% से अधिक बताई जाती है। इनमें 13% से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता शामिल हैं। जबकि, मुसलमानों की जनसंख्या 15% से कम है। इस सीट पर करीब 19.62 लाख वोटर हैं। वाराणसी लोकसभा में 5 विधानसा सीटे हैं, जिनमें 2022 में रोहनिया में बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) जीती थी। बाकी वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट और सेवापुरी बीजेपी के खाते में गई थी। वाराणसी में जातीय फैक्टर जातीय समीकरणों की बात करें तो वाराणसी में ओबीसी सबसे बड़ा चुनावी फैक्टर हैं, जिनकी संख्या 3 लाख से ज्यादा है। लगभग 2 लाख कुर्मी और करीब एक लाख यादव वोटर हैं। 2 लाख वैश्य मतदाताओं के अलावा सवर्णों में ब्राह्मण और भूमिहार जाति की भी अच्छी तादाद है। इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशी अजय राय भूमिहार बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं, जबकि बसपा ने मुसलमान को टिकट देकर उसकी राह और मुश्किल बना दी है। 2019 में सपा-बसपा का यहां गठबंधन था और कांग्रेस अकेले मैदान में थी। वहीं 2014 में सपा, बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के अलावा केजरीवाल भी एक बड़े फैक्टर बनकर उतरे थे। तब बसपा ने भी यहां से वैश्य प्रत्याशी पर दांव लगाया था। कांग्रेस लगातार तीसरी बार भूमिहार उम्मीदवार अजय राय पर प्रयोग कर रही है।