जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । बीजेपी कार्यालय में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह अपने दफ्तर में बैठे रहे और अपने बेटे जय शाह के उपर लगे आरोप का बचाव करने के लिए सामने नहीं आए। इस काम के लिए उन्होंने केंद्र सरकार के मंत्री पीयूष गोयल और तीन प्रवक्ता को सफाई देने में उतार दिए। हालांकि पत्रकारों से यह भेंट अनोपचारिक थी, लेकिन सभी नेता जय शाह का बचाव सही तरीके से नहीं कर पाए। द वाय़र वेबसाइट पर 100 करोड़ रुपए के मानहानी के दावे और वित्त मंत्री अरुण जेटली के द्वारा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर 10 करोड़ के मानहानी की तुलना पर गोयल सफाई देने में पूरी तरह असफल रहे।
जेटली दिल्ली के सीएम केजरीवाल पर 10 करोड़ के मानहानी का दावा ठोके हुए हैं। केंद्र सरकार के एक कद्दावर मंत्री मानहानी में मात्र 10 करोड़ की मांग करते हैं जबकि एक पार्टी के अध्यक्ष के बेटे पत्रकारों पर 100 करोड़ का दावा किस आधार पर करते हैं तो इस मामले पर साफगोई नहीं दे सके। पार्टी के एक प्रवक्ता यह कह कर पाला झाड़ लिए कि पत्रकार की हैसियत सीएम के हैसियत से ज्यादा है।
अमित शाह के बेटे जय शाह के खिलाफ जिस पत्रकार ने खबर लिखी है वह पत्रकार रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ भी खबर लिखकर सुर्खी बटोर चुकी है। इसलिए किसी पार्टी के इशारे पर खबर लिखने का आरोप पत्रकार पर नहीं लगाया जा सकता। इस मामले पर जब महिला पत्रकारों ने सवाल दागा तो बीजेपी के मंत्री और प्रवक्ता लड़खड़ाते नजर आए। रेल मंत्री पीयुष गोयल रविवार को भी सफाई देने के लिए सामने आए थे, लेकिन पाला उनके खिलाफ ही गया। जो मीडिया हाउस खबर छापने से कतराते वे पीयुष गोयल के हवाले से खबर छापकर सारे मामले को आम आदमी के सामने ला दिए। यानि पाला उलटा पड़ गया।
पीयुष गोयल के मंत्रीकाल में ही उनके मंत्रालय द्वारा जय शाह की कंपनी को करोड़ों रु. का सस्ता ऋण उपलब्ध करवाया गया था। सवाल यह उठता है कि क्या जय शाह, मोदी मंत्रीमंडल में मंत्री हैं या फिर भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी? यदि नहीं तो फिर क्यों भारत सरकार के मंत्री एक निजी व्यक्ति के बचाव में अकारण खड़े हैं? भाजपा के मंत्रियों ने कितने और लाभकर्ताओं व ऋण लेने वालों की ऐसी वकालत सार्वजनिक तौर पर की है?
भाजपा के कई राष्ट्रीय अध्यक्षों के शंकास्पद आचरण व आर्थिक अनियमितताओं के इल्जामों का चोली दामन का साथ रहा है। पिछले वर्षों में तीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्षों को संदेह के घेरे में लगे इल्जामों के चलते पदमुक्त होना पड़ा। सबको याद है कि जैन हवाला केस के बाद, लाल कृष्ण आडवानी ने त्याग पत्र दे जांच व मुकदमें के निर्णय तक कोई पद न लेना स्वीकार किया था। तहलका कांड में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष, बंगारु लक्ष्मण ने रिश्वत लेते पकड़े जाने पर इस्तीफा दे दिया था। नितिन गडकरी ने तो आरोप लगते ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।