अमलेंदु भूषण खां / रांची : झारखंड सरकार भूख से हो रही मौतों को बहुत ही साजिश के तहत नकार रही है, ताकि पूरी दुनिया में खनिज संपदा से भरपूर राज्य की हकीकत को छिपाया जा सके। लेकिन एक के बाद एक की हो रही मौतों से सरकार के खोखले दावे सामने आ रहे हैं। कुछ माह पहले झारखंड के सिमडेगा जिले में 11 साल की लड़की की मौत भूख से तड़प-तड़प कर हो गई थी। मरने वाली बच्ची के परिवार वालों ने आरोप लगाया था कि राशन कार्ड को आधार से लिंक नहीं करा पाने के कारण पिछले आठ महीने से उन्हें सस्ता राशन नहीं मिल रहा था. परिवार का कहना है कि संतोषी कुमारी नाम की इस लड़की ने 8 दिन से खाना नहीं खाया था, जिसके कारण 28 सितंबर 2017 को भूख से तरप तरप कर उसकी मौत हो गई.झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ऐसी किसी घटना से इनकार किया था।
जबकि संतोषी की मां कोयली देवी का कहना है ‘मैं जब वहां चावल लेने गई तो मुझे बताया गया कि राशन नहीं दिया जाएगा. मेरी बेटी ‘भात-भात’ कहते मर गई.’
इसके बाद गढ़वा जिले में मुर्दों के नाम पर राशन बांटने की बात सामने आई तो रघुवर दास सरकार फिर इससे इनकार कर गई। मामला गढ़वा जिले के रमकंडा प्रखण्ड के सुदूरवर्ती चेटे पंचायत की है. डीलर मुनिलाल प्रसाद के यहां से वर्षों पहले मृत तीन राशन लाभुक राशन उठा रहे हैं. मृत लोगों द्वारा राशन उठाव की जानकारी खाद्य आपूर्ति विभाग की वेबसाइट भी करता है. तीनों मामलों में यूआईडी की जगह मोबाइल नम्बर के माध्यम से ओटीपी बनाकर राशन का उठाया जा रहा है. एक तरफ जिंदा लोगों को राशन नहीं मिल रहा दूसरी तरफ मुर्दों के नाम से डीलर कालाबाजारी कर रहे हैं
ताजा मामला झारखंड़ के गढ़वा जिले के कोरता गांव का है, जहां एक 64 साल की विधवा की मौत भूख से तरप तरप कर हो गई है। एक दिसंबर को जब प्रेमनी कुंवर का इकलौता बैटा उत्तम सुबह में अपनी मां को जगाने के लिए गया तो उसकी मां जिंदा नहीं थी। उत्तम का कहना है कि घर में अनाज न होने के कारण उसकी मां कई दिनों से खाना नहीं खाई थी। उसका कहना है कि मेरी मां को पिछले दो माह से विधवा पेंशन भी नहीं मिल रहा था। पीडीएस से राशन नहीं मिला था।
उत्तम का कहना है कि ‘मैं 29 नवम्बर को राशन लेने गया था। उन्होंने कहा कि आज अंगूठा लगा दो, राशन के लिए 2 दिसंबर को आना लेकिन 1 दिसंबर की सुबह ही मेरी मां मर गई…।’ 13 साल का उत्तम फफक फफक कर कह रहा है कि कि अगर मां को खाना मिला होता तो वह आज जिंदा होती। हालांकि प्रशासन इसे भूख से मौत मानने को तैयार नहीं है।
प्रशासन का तर्क है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसके शरीर में भोजन का अंश मिला है और इस कारण यह भूख से मौत नहीं हो सकती। ऐसा पहली बार नहीं है जब प्रशासन ने भूख से मौत की घटनाओं को खारिज किया है। अगर आम जनता में ज्यादा विरोध होता है तो जांच बैठा दी जाती है। जांच होती रहती है, समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं।
मामले की जांच से यह बात सामने आई है कि उत्तम की मां 28 अक्तूबर को पीडीएस से राशन ली थीं। राशन डीलर ने 14 नवंबर को फिर प्रेमनी कुंवर से अंगूठा लगवा लिया था लेकिन राशन नहीं दिया था। प्रेमनी कुंवर के परिजन और पडोसियों ने 8 दिसंबर को पहुंची यूआईडीएआई की टीम को बताया कि अंगूठा लगाने के बाद लगभग तीन सप्ताह बाद राशन मिलता है।
उत्तम बताते हैं, ‘घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं है। पिछले एक महीने से घर में कुछ भी नहीं बना है। ममी (प्रेमनी कुंवर) कमजोर हो गई थीं। वह चल भी नहीं पा रही थीं। मैं राशन लाने गया था लेकिन वहां सिर्फ अंगूठा लिया गया और 2 दिसंबर को आने के लिए कहा गया। भूख से तड़पकर मेरी मां मर गई।’ जांच में भी यह बात सामने आई है कि उत्तम के परिवार को अंतिम बार सरकारी दुकान से राशन 28 अक्टूबर को मिला था। पीडीएस डीलर ने 29 नवम्बर को अंगूठा लिया था लेकिन राशन नहीं दिया।
उत्तम के सौतेले भाई, उनकी पत्नियां और बच्चों सहित करीब एक दर्जन लोग एक साथ ही मिट्टी की झोपड़ी में रहते हैं। सबों का कहना है कि ‘भूख से मौत हुई है।’ इस सवाल पर कि उन्होंने उन्हें (उत्तम की मां को) खाने के लिए क्यों नहीं कुछ दिया, एक सौतेली बहू ने कहा, ‘हमारे पास खुद ही खाने के लिए राशन कम है। अगर हम उन्हें दे देते तो खुद क्या खाते।’
गरीबी और पूरी तरह से सरकारी राशन पर निर्भरता कोरता क्षेत्र की एक कड़वी सच्चाई है। यहां से 60 फीसदी पुरुष नौकरी की तलाश में पलायन कर चुके हैं। बताया जाता है कि राशन नहीं मिलने और 600 रुपये विधवा पेंशन किसी और खाते में स्थानांतरित होने के कारण कुंवर की मौत हुई है। हालांकि प्रशासन ने इस बात से इनकार कर दिया है। प्रशासन का कहना है कि कुंवर की मौत की वजह भूख नहीं है। रही विधवा पेंशन की बात तो वह उनके द्वारा ही संचालित दूसरे खाते में भेज रहे थे, जिसमें अब भी पैसे हैं।