जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने का मुद्दा शुक्रवार को गर्माया रहा. ‘आप’ के मौजूदा 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने को लेकर चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति को सिफ़ारिशें भेजीं है.
आप नेता सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया, ’23 जनवरी को रिटायर हो रहे मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार जोति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कर्ज़ चुकाना चाहते हैं. हम हाइकोर्ट में अपील करेंगे.’
शुक्रवार रात साढ़े नौ बजे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया, ‘जब आप सच्चाई और ईमानदारी पर चलते हैं तो बहुत बाधाएँ आती हैं. ऐसा होना स्वाभाविक है.’
चुनाव आयोग की तरफ से इस मुद्दे पर अब तक कोई बयान नहीं आया है.
इस बीच बीजेपी और कांग्रेस नेताओं ने आम आदमी पार्टी पर तीखे हमले किए.
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, ’20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने का विषय चोर की दाढ़ी में तिनका जैसा मामला है. 2015 के मार्च के महीने में केजरीवाल 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाते हैं, वो ये सोच रहे थे कि इसके बारे में लोगों को पता नहीं चलेगा और संविधान को आपने ताक में रख दिया.’
कांग्रेस नेता अजय माकन ने ट्विटर पर लिखा, ‘केजरीवाल को सत्ता में रहने का कोई हक नहीं है. संसदीय सचिव पद के फ़ायदा उठा रहे आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करनी चाहिए.’
पार्टी से बाहर निकाले गए कपिल मिश्रा ने लिखा, ‘लालच में अंधे होने की क़ीमत केजरीवाल को चुकानी पड़ रही है. सभी 20 सीटों पर केजरीवाल के लोगों की ज़मानत (जब्त) होगी. केजरीवाल पैसों के लालच में अंधे हो चुके थे.’
इन सबके बीच कुछ भारतीय मीडिया चैनलों ने ऐसी भी ख़बरें चलाई कि बीजेपी और कांग्रेस चुनाव की तैयारी में जुट गई हैं. कुछ चैनलों ने त्वरित सर्वे भी चलाए.
इन सर्वे में ये अनुमान लगाया गया कि अगर ‘आप’ विधायकों की सदस्यता रद्द होती है और खाली हुई 20 सीटों पर चुनाव होते हैं तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी.
शाम होते-होते आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को लेकर दिल्ली हाइकोर्ट पहुंची.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो हाइकोर्ट ने ‘आप’ को फटकार लगाई कि इस मामले में विधायकों को चुनाव आयोग के बुलाने पर जाना चाहिए था और मसले पर फौरी राहत नहीं दी जा सकती.
आम आदमी पार्टी के ऑफ़िशियल ट्विटर हैंडल से लिखा गया, ‘लाभ का पद मसले पर सोमवार को कोर्ट में सुनवाई होगी. चुनाव आयोग के वकील ने हाईकोर्ट से कहा कि इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने को लेकर आयोग की तरफ से कोई सिफ़ारिश भेजी गई है या नहीं.’
दिल्ली में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं.
ऐसे में अगर इन 20 सीटों पर ‘आप’ विधायकों की सदस्यता रद्द भी हो जाती है तब भी दिल्ली में ‘आप’ की सरकार पर कोई ख़तरा नहीं है और वो सत्ता में बनी रहेगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक जिन 20 विधायकों पर चुनाव आयोग की तलवार लटकी हुई है, उनमें ये नाम हैं-
- आदर्श शास्त्री, द्वारका
- अल्का लांबा, चांदनी चौक
- अनिल वाजपेई, गांधी नगर
- अवतार सिंह, कालकाजी
- कैलाश गहलौत, नजफगढ़
- मदनलाल, कस्तूरबा नगर
- मनोज कुमार, कोंडली
- नरेश यादव, महरौली
- नितिन त्यागी, लक्ष्मी नगर
- प्रवीण कुमार, जंगपुरा
- राजेश गुप्ता, वजीरपुर
- राजेश ऋषि, जनकपुरी
- संजीव झा, बुराड़ी
- सरिता सिंह, रोहतास नगर
- सोम दत्त, सदर बाज़ार
- शरद कुमार, नरेला
- शिव चरण गोयल, मोती नगर
- सुखबीर सिंह, मुंडका
- विजेंद्र गर्ग, राजेंद्र नगर
जरनैल सिंह, तिलक नगर
क्या कहते हैं सुभाष कश्यप
आमतौर पर राष्ट्रपति सभी मामलों में काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की सलाह लेते हैं.
लेकिन आम आदमी पार्टी के विधायकों की सदस्यता के मामले में राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सलाह पर काम करंगे. क्योंकि ऐसे मामलों में यही प्रावधान है.
ऐसे में राष्ट्रपति को सलाह देने का ज़िम्मा काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की जगह चुनाव आयोग पर आ जाता है. जैसे राष्ट्रपति को काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की सलाह मान्य होती है, ठीक वैसे ही चुनाव आयोग की सलाह भी मान्य होती है.
आमतौर पर चुनाव आयोग से जितने फ़ैसले लिए जाते हैं वो तीनों लोग एकमत से लेते हैं. अगर मुख्य चुनाव आयुक्त किसी बात का ऐलान करता है तो अपेक्षा ये रहती है कि बाक़ी के दो चुनाव आयुक्तों से भी इस पर बात की गई होगी. इसे चुनाव आयोग की सलाह ही माना जाता है.
अब आगे इसमें ये हो सकता है कि राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सलाह पर मुहर लगा देंगे. मुहर लगाने के बाद सदस्यता रद्द करने से सीटें खाली हो जाएंगी और फिर चुनाव आयोग इन सीटों पर चुनाव करवाने का फ़ैसला करेगा.
राष्ट्रपति भवन से सदस्यता रद्द करने का एक गैजेट नोटिफ़िकेशन जारी होगा, जिसके बाद इसकी जानकारी चुनाव आयोग को भी हो जाएगी. संभव है कि प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष को इसकी जानकारी दे सकते हैं.
सदस्यता रद्द करने के छह महीने के भीतर चुनाव कराया जाना ज़रूरी होता है.
इसके तहत दो शर्तें होती हैं. एक ये कि सरकार के अंतर्गत हो और लाभ का पद हो. लाभ का मतलब ये नहीं है कि उसको पैसे मिलते हों या बंगला, गाड़ी मिलती हो.
ऐसे पदों से मिलने वाली पावर भी लाभ माना जाएगा. नियुक्ति करने और कार्यकारी शक्ति का इस्तेमाल भी लाभ का पद माना जाता है.
जहां तक कमरे का सवाल है, कुछ ने कहा कि इन पदों के तहत कमरे नहीं लिए गए. दूसरा कुछ ने तस्वीरों के ज़रिए ये कहा कि कमरे नहीं लिए गए. इसमें सच क्या है, ये नहीं कहा जा सकता.
मूल बात ये है कि इस पर फ़ैसला करना चुनाव आयोग के पास है. चुनाव आयोग ने अगर तय कर दिया तो आम आदमी पार्टी के कहने से बात ख़त्म नहीं हो जाती है.
आम आदमी पार्टी चाहे तो सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. इस अधिकार को कोई नहीं छीन सकता. लेकिन मुझे नहीं लगता कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दख़ल देगी.
‘आप’ विधायक चाहें तो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं लेकिन वहां से दख़ल दिए जाने की संभावना कम ही है.