जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कोरोना संकट के समय रिजर्व बैंक द्वारा मोनेटाइजेशन प्रोग्राम पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसकी बड़ी कीमत होती है और यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं हो सकता है।राजन ने कहा कि आर्थिक नरमी के बीच केंद्रीय बैंक अतिरिक्त नकदी के एवज में सरकारी बॉन्ड की खरीद कर रहा है और अपनी देनदारी बढ़ा रहा है।
RBI रिवर्स रीपो पर ले रहा कर्ज
उन्होंने कहा कि कई उभरते बाजारों में केंद्रीय बैंक इस प्रकार की रणनीतिक अपना रहे हैं लेकिन यह समझना होगा कि मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। सिंगापुर के डीबीएस बैंक द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में राजन ने कहा, ‘आरबीआई अपनी देनदारी बढ़ा रहा है और सरकारी बॉन्ड की खरीद कर रहा है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में वह बैंकों से रिवर्स रीपो दर पर कर्ज ले रहा है और सरकार को उधार दे रहा है।’
बैंक आरबीआई के पास जमा कर रहे पैसा
बता दें कि बैंकों के पास कर्ज बांटने के लिए पर्याप्त पैसा है। रीपो रेट घटाकर लोन भी सस्ता किया जा रहा है, लेकिन लोग जोखिम लेने से बच रहे हैं। नौकरी का हाल बुरा है, जिसके कारण वे बचत पर जोर दे रहे हैं। ऐसे में बैंक अपना पैसा रिजर्व बैंक में जमा करते हैं। उन्हें जो इंट्रेस्ट रेट मिलता है उसे रिवर्स रीपो रेट कहते हैं। राजन का कहना है कि रिजर्व बैंक यह पैसा सरकार को उधार दे रहा है।
अतिरिक्त नोटों की छपाई की भी सीमा होती है
वर्तमान आर्थिक हालात में कुछ अर्थशास्त्री और विश्लेषक राजकोषीय घाटे की भरपाई और मौजूदा स्थिति से निपटने को लेकर अतिरिक्त नोटों की छपाई का सुझाव दे रहे हैं। राजन ने कहा कि अतिरिक्त नोटों की आपूर्ति की एक सीमा है और यह प्रक्रिया सीमित अवधि के लिये ही काम कर सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया, ‘आखिर यह प्रक्रिया कब समाप्त होती है? जब लोग अतिरिक्त नोटों की छपाई को लेकर आशंकित होने लगते हैं, जब वे इस बात की चिंता करने लगते हैं कि जो कर्ज एकत्रित हुआ है, उसे वापस करना होगा या फिर वृद्धि में तेजी आनी शुरू होती है और बैंक केंद्रीय बैंक के पास पैसा रखने के बजाए उसका दूसरी जगह उपयोग का बेहतर विकल्प देखते हैं।’
लॉकडाउन खुलने के बाद दिखाई देगा असर
राजन ने यह भी कहा कि भारत में जब लॉकडाउन पूरी तरह खुलेगा तब कॉर्पोरेट पर इसका असली असर दिखना शुरू होगा। आने वाले दिनों में बड़े पैमाने पर कर्ज वापस नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे इन नुकसान का फाइनैंशल सेक्टर पर असर दिखाई देगा। ऐसे में सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंकों के पास स्थिति से निपटने के लिये पर्याप्त पूंजी हो। इसे फाइनैंशल सेक्टर की समस्या बनने के लिये नहीं छोड़ा जा सकता।