जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली: ह्यूमन कैपिटल सॉल्यूशंस एवं सर्विसिस के क्षेत्र में वैश्विक लीडर जीआई ग्रुप होल्डिंग इंडिया ने अपनी तीसरी रिसर्च रिपोर्ट जारी की हैः ’’द सेफ्टी नैट्ः सपोर्टिंग ऐम्पलॉई वैल-बीइंग विद साइकोलॉजिकल सेफ्टी 2023’’। इस सर्वेक्षण में भारत के 6 बड़े शहरों बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली एनसीआर व हैदराबाद के 500 से अधिक नियोक्ताओं और 1000 से ज्यादा कर्मचारियों को शामिल किया गया। इस रिपोर्ट ने ऑटो, बीएसएफआई, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, एफएमसीजी, ई-कॉमर्स, हैल्थ, आईटी/आईटीईएस व रिटेल जैसे प्रमुख उद्योगों को अपने दायरे में लिया है और इसमें विविध आकारों के संगठन शामिल रहे हैं। इस अध्ययन का अंतिम लक्ष्य है एक स्थिर व समृद्धकारी श्रम बाजार को पोषित करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को प्रकाश में लाना। यह अध्ययन इस बात की पड़ताल करता है की कर्मचारियों, संगठनों व समग्र समाज के लिए एक परिवर्तनकारी एवं सकारात्मक कार्य परिवेश निर्मित करने के लिए कार्य स्थल पर मनोवैज्ञानिक सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है।
जीआई ग्रुप होल्डिंग इंडिया की ताज़ा रिसर्च कार्यस्थलों पर मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की अहम भूमिका पर रोशनी डालती है और कर्मचारी संतुष्टि, मानसिक सेहत, इनोवेशन, प्रतिभा को आकर्षित करने व उसे बरकरार रखने में पड़ने वाले प्रभाव का खुलासा करती है। इस सर्वेक्षण के अनुसार 94 प्रतिशत कर्मचारियों ने माना की मनोवैज्ञानिक सुरक्षा परम आवश्यक है जबकि 79 प्रतिशत नियोक्ताओं ने सुरक्षित वातावरण को प्राथमिकता दी। इस अध्ययन में 74 प्रतिशत कर्मचारियों ने माना की मनोवैज्ञानिक रूप से असुरक्षित कार्यस्थल मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकता है। हालांकी 57 प्रतिशत नियोक्ता मनोवैज्ञानिक सुरक्षा से अवगत पाए गए, किंतु सिर्फ 35 प्रतिशत कर्मचारी इस बारे में जागरुक पाए गए, यानी की इस बारे में सम्प्रेषण व शिक्षा बढ़ाने की आवश्यकता है। 26 से 45 वर्ष के कर्मचारियों में से 96 प्रतिशत ने इस अहमियत को समझा जबकि 46 वर्ष व अधिक आयु के कर्मचारियों में से 86 प्रतिशत ही इस पर जागरुक पाए गए। मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की पहचान करने में छोटे संगठन सबसे आगे रहे (98 प्रतिशत), इनके बाद मध्यम आकार के संगठनों का नंबर आता है (95 प्रतिशत) और फिर बड़े संगठन (88 प्रतिशत)।
तीसरी रिसर्च रिपोर्ट पर जीआई ग्रुप होल्डिंग इंडिया की कंट्री मैनेजर सोनल अरोड़ा ने कहा, ’’मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के संग कर्मचारी कल्याण पर वर्ष 2023 की रिसर्च रिपोर्ट लांच करते हुए हम बहुत खुश हैं। हमने 2021 में अपनी रिपोर्ट के प्रथम संस्करण में इस अहम मुद्दे को प्रकाश में लाने की कोशिशें शुरु कीं जो हमारे समाज पर असर डाल रहा है। इस रिपोर्ट में हमारे देश में, और खासकर कॉर्पोरेट सेक्टर में, मानसिक सेहत संबंधी मुद्दों पर बढ़ते जागरुकता स्तर पर फोकस किया गया। इसके बाद दूसरी रिपोर्ट 2022 में जारी की गई जिसमें कर्मचारियों के सामने पेश आ रही कुछ चुनौतियों को उठाया गया। इन चुनौतियों में शामिल रहीं: कर्मचारियों के कार्यकाल संबंधी स्थिरता की चिंताएं, जिम्मेदार व प्रशिक्षित लीडरों की आवश्यकता जो कार्यस्थल का तनाव एवं नौकरी की असुरक्षा को समझते हों। 2023 की रिपोर्ट के साथ हम उन पहलुओं को प्रकाश में ला रहे हैं जो एक पोषणकारी माहौल की रचना हेतु आवश्यक हैं, उस माहौल में मनोवैज्ञानिक सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा, परिणास्वरूप कर्मचारी व्यावसायिक और व्यक्तिगत दोनों मोर्चों पर बहुत अच्छा कर पाएंगे।’’
जीआई ग्रुप की रिसर्च खुलासा करती है की दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारी मनोवैज्ञानिक सुरक्षा कम महसूस करते हैं, उन कर्मचारियों की तुलना में जो हाइब्रिड मोड में या रिमोट मोड में काम करते हैं। इससे कार्यस्थल पर पक्षपात, दुराचार का इशारा मिलता है तथा गैरहाजिरी भी असुरक्षित वातावरण की संकेतक है। संकोच के चलते लोग मानसिक सेहत संबंधी चिंताओं और पक्षपात के बारे में चर्चा नहीं करते हैं। एक सहयोगात्मक और समावेशी कार्यस्थल बनाने के लिए फीडबैक की व्यवस्था और निष्पक्ष नीतियां बेहद अहम हैं। कर्मचारियों का मानना है की मनोवैज्ञानिक सुरक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए लीडरशिप और मानव संसाधन विभाग जिम्मेदार हैं। इससे व्यवहार और सम्प्रेषण प्रशिक्षण की अहमियत भी रेखांकित होती है। आजकल, नियोक्ता कर्मचारियों के कल्याण को प्राथमिकता दे रहे हैं, मानसिक सेहत के लिए छुट्टियां दी जा रही हैं और अनुकूल वातावरण हेतु कार्य सिद्धांत बनाए जा रहे हैं। ये कर्मचारियों के लिए सहायक कार्यक्रम प्रदान कर रहे हैं, सहयोगात्मक कार्य संस्कृति को पोषित करने के लिए प्रतिबद्धता दर्शा रहे हैं।
रोज़गार क्षेत्र में उभरते रुझानः
रुझानों के अनुसार रोज़गार क्षेत्र उभरते भविष्यवादी जुड़ावों द्वारा चालित रूपांतरकारी बदलावों का अनुभव कर रहे हैं। इन रुझानों का परीक्षण करते हुए यह रिपोर्ट विकसित होते रोजगार परिदृश्य के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करती है तथा कर्मचारियों एवं नियोक्ताओें दोनों के लिए इसके निहितार्थ बताती है।
- स्त्रोतों के अनुसार रिमोट व फ्लेक्सिबल कार्य व्यवस्था को अपनाने जैसे रुझान परंपरागत कार्य मॉडलों में पूरी तरह बदलाव की वजह बन रहे हैं। अब कंपनियां फ्लेक्सिबल व्यवस्था को अपना रही हैं, कर्मचारियों को कहीं से भी काम करने की अनुमति दे रही हैं, इससे कार्य व जीवन का संतुलन बेहतर हुआ है और टैलेंट पूल में भी इज़ाफा हुआ है।
- डिजिटल कौशल और अपस्किलिंग पर ज़ोर बढ़ा है। डिजिटल क्रांति ने विशेषीकृत कौशल की मांग बढ़ाई है जैसे डाटा ऐनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस व साइबर सुरक्षा। प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए व्यक्तियों और संगठनों को निरंतर सीखने व कौशल वृद्धि में निवेश करना चाहिए ताकी वे डिजिटल अर्थव्यवस्था की नई-नई मांगों को पूरा कर सकें।
- जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ऑटोमेशन का एकीकरण रोजगार क्षेत्र का अभिन्न अंग बनता जा रहा है।
- विविधता, निष्पक्षता व समावेशन पर फोकस बढ़ रहा है। अब कंपनियां विविधतापूर्ण और समावेशी कार्यस्थल की अहमियत को समझ रही हैं; केवल सामाजिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि इनोवेशन एवं परफॉरमेंस के सुचालक के तौर पर भी। विविधता को बढ़ावा देने, समान अवसर सुनिश्चित करने और समावेशी संस्कृतियों को पोषित करने के लिए नियोक्ता सक्रियता से रणनीतियों पर अमल कर रहे हैं।
मनोवैज्ञानिक सुरक्षा पर बढ़ती जागरुकता पर सोनल अरोड़ा ने कहा, ’’यह देखना बहुत अच्छा लग रहा है की अब नियोक्ता अपने कर्मचारियों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं। कंपनियां कार्य सिद्धांतों का समायोजन कर रही हैं, मानसिक सेहत हेतु छुट्टियां और अवकाश दे रही हैं, कार्य-जीवन के संतुलन के महत्व को समझ रही हैं। बदलते रुझानों के साथ संगठन सहयोगी कार्य वातावरण बनाने की जरूरत को समझ रहे हैं, जहां तंदुरुस्ती को प्राथमिकता हो। मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर हम न केवल अपने कार्यबल की जिंदगी में इज़ाफा कर रहे हैं बल्कि उत्पादकता एवं निरंतर वृद्धि को भी बल दे रहे हैं। एकजुट होकर हम सहानुभूति व करुणा के साथ नए रोजगार परिदृश्य को नैविगेट कर सकते हैं और नियोक्ता व कर्मचारी दोनों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।’’