जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। पहले नोटबंदी और अब जीएसटी इसका बड़ा कारण है। वहीं लघु एवं मध्यम उद्योगो के लिए बैंक की गलत नीतियां काल बन गयी है। बताया जा रहा है कि बैंक अपने ऋण की वसूली के लिए सार्टकट तरीका अपना रहे हैं जो कि उनके कानून की किताब के हिसाब से भले ही सही है, लेकिन सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से सही करार नहीं दिया जा सकता।
फेडरेशन आफ इंडियन स्मॉल बिजनेस के अध्य़क्ष वी के बंसल ने बताया कि एक ओर मोदी सरकार युवाओं को रोजगार के स्थान पर स्व रोजगार के लिए प्रेरित कर रही है। कारोबार शुरू करने के लिए मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना जैसी स्कीमों के माध्यम से पैसा दे रही है। वहीं दूसरी ओर इन सबसे अलग सरकारी बैंक छोटे उद्यमियों की प्रापर्टी पर कब्जा कर नीलाम करने में अधिक रूचि ले रहे हैं। दिल्ली के रोहिणी में रहने वाले ललित वैंस के साथ बैंक आफ इंडिया ने कुछ ऐसा ही किया। ललित वैंस ने बैंक पर आरोप लगाया है बैंक ने जबरन डिफाल्टर घोषित करके उनके पूरी 1.5 करो़ड़ की प्रापर्टी को मात्र 36 लाख मे नीलाम कर दिया। 50 साल की उम्र् मे अपनी पूरी जिंदगी की कमाई छिन जाने से ललित वैंस का पूरा परिवार बुरी तरह से टूट चुका है।
बंसल बताते हैं कि अकेले ललित वैंस ही नहीं सिर्फ दिल्ली के ही 50 से अधिक ऐसे लघु उद्यमी हैं। जिनके साथ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने इस तरह की एक तरफा कार्रवाई करके उन्हें रातोरात सड़़क पर ला दिया है। ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिनकी किस्में समय से जमा नहीं हो पायी थी। लेकिन उनकी ऐसी स्थिति कतई नहीं थी कि वे डिफाल्टर की श्रेणी मेंआते हो। बैंको ने उन्हें जबरन डिफाल्टर बनाकर कानून का गलत इस्तेमाल किया। दरअसल बैंको की यह करतूत किसी बड़ी साजिश का नतीजा है। डिफाल्टर घोषित करके प्रापर्टी को कौड़ियों के दाम पर बेचने के पीछे सीधेतौर पर भ्रष्टाचार का मामला नजर आता है। उन्होंने कहा जल्द ही इस मामले को लेकर वे सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे ताकि लोगो को इंसाफ मिल सके।
हालांकि बैंक इस तरह की कार्रवाई के पीछे आरबीआई की गाइडलाइन का हवाला दे रहे हैं। लेकिन गाइडलाइन में ऐसा कही नहीं है कि किसी भी ऋणदाता को बगैर बताए उसकी प्रापर्टी को नीलाम कर दिया जाए। यही नहीं जिस प्रापर्टी की बाजार कीमत दो करोड़ हो उसे मात्र 18 फीसदी यानि 35 से 36 लाख में ही नीलाम कर दिया जाए। जाहिर है कि बैंक अधिकारी इस तरह की कार्रवाई करके न सिर्फ अपनी जेबे भर रहे हैं बल्कि मोदी सरकार और वित्त मंत्रालय की नीतियों की खुलेआम धज्जियां उड़ाकर उन्हें बदनाम करने का भी काम कर रहे हैं। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर लगाम लगाना अब जरूरी हो गया है।
ललित बैंस क्या कहते हैं
दिल्ली के रोहिणी में रहने वाले ललित वैंस ने बैंक पर आरोप लगाया है बैंक ने जबरन डिफाल्टर घोषित करके उनके पूरी 1.5 करो़ड़ की प्रापर्टी को मात्र 36 लाख मे नीलाम कर दिया। 50 साल की उम्र् मे अपनी पूरी जिंदगी की कमाई छिन जाने से ललित वैंस का पूरा परिवार बुरी तरह से टूट चुका है वैसे इस पूरे मसले पर बैंक का कहना है कि जो भी कार्रवाई की गई सब आरबीआई की गाइडलाइन के अनुसार की गई है। ललित वैंस ने बैंक आफ इंडिया पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपना कारोबार शुरू करने के लिए 2007 में 25 लाख का लोन दिल्ली के पीरागढ़ी ब्रांचच से लिया था। उन्होंने बैंक को 2007 से 2011 तक लगातार लोन की किस्त दी है। इस बीच उनका क्रेडिट स्कोर अच्छा रहा तो बैंक ने उन्हें किस्तो में 15 लाख का लोन और दे दिया। लेकिन इस बीच कारोबार में कुछ दिक्कतें आने से यह तीन महीने तक लोन नहीं दे पाए तो बैंक ने आनन-फानन में उन्हें नान परफार्मिंग एसेस्ट एपीए में डाल दिया। यानि की उन्हें डिफाल्टर घोषित कर दिया। ललित वैंस बताते हैं कि उन्होंने बैंक से लोन लेकर आटो पार्टस की मैन्यूफैक्चरिंग का काम सोनीपत के एचएसआईडीसी , राई इंडस्ट्रीयल एरिया में शुरू किया था। सब कुछ ठीक चल रहा था। वह बैंक को लगातार उनकी किस्त दे रहे थे लेकिन काम में व्यवधान होने से वह तीन महीने तक लोन नहीं दे सके। तो बैंक ने उन्हें एनपीए मे डाल दिया लेकिन इफर उन्होंने बैंक एक मुथ् सात लाख दे दिये तो बैंक ने उन्हें एनपीए से बाहर कर दिया अब एक बार फिर से लललित बैंस बैंक के अच्छे कस्तमर थे। इसी दौरान कारोबार में जबरदस्त बंदी आ गयी। ललित बैंस लगातार पांच महीने तक लोनो की किस्त नहीं दे पा रहे थे। इस बार बैंक ने फिर उन्हें कोई रियायत दिए विलपूल (जबरन डिफाल्टर) घोषित कर दिया जबकि कुछ समय पहले ही वह को एक मुश्त सातत लाख रूपये दे चुके थे। उन्होंने बैंक आफ इंडिया के तत्कालीन ब्रांच मैनेजर सुनील बंसल से गुजारिश की कि उनके लोन को रिस्ट्रक्चर दिया जाे। लेकिन वह नहीं किया गया। मेरे कर्ज में 9 लाख और बढ़ दिे। जिसका खर्च उन्होंने मुनादी कराने और पम्पलेच छपवाने फैक्रटरी की निगरानी के लिए गार्ड रखने जैसे कामों में खर्च होना बताया है। वैंस बताते हैं कि वह लगातार इस बात के लिए बैंक से गुहार लगाते रहे कि वह लोने दे देंगे उन्हें थोजदडा समय दे दे । लेकिन बैंक उनकी 1.5 करोड़ से 2 करोड़ की प्रापर्टी को नीलाम करने पर उतारू था। हुआ भी वही बैंक ने सरफेसी एक्ट लगाकर उनको प्रापर्टी पर कब्जा कर लिया और मात्र 36 लाख में बेच दिया। ललित वैंस ने बैंक पर आरोप लगाया कि इस प्रापर्टी की नीलामी में बड़ा खेल हुआ है। अब ललित बैंस न्याय के लिए बैंक आफ इंडिया के उच्च अधिकारियों केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पीएमओ फाइनेस सर्विस के दफ्तरो का चक्कर काट रहे हैं।