जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह की संपत्ति में अचानक बढ़ोत्तरी के सवाल पर भारत सरकार के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल के बचाव में उतरने पर कांग्रेस ने सवाल खड़ा किया है। कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा कि पीयुष गोयल के मंत्रीकाल में ही उनके मंत्रालय द्वारा जय शाह की कंपनी को करोड़ों रु. का सस्ता ऋण उपलब्ध करवाया गया था। सवाल यह उठता है कि क्या जय शाह, मोदी मंत्रीमंडल में मंत्री हैं या फिर भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी? यदि नहीं तो फिर क्यों भारत सरकार के मंत्री एक निजी व्यक्ति के बचाव में अकारण खड़े हैं? भाजपा के मंत्रियों ने कितने और लाभकर्ताओं व ऋण लेने वालों की ऐसी वकालत सार्वजनिक तौर पर की है?
भाजपा के कई राष्ट्रीय अध्यक्षों के शंकास्पद आचरण व आर्थिक अनियमितताओं के इल्जामों का चोली दामन का साथ रहा है। पिछले वर्षों में तीन भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्षों को संदेह के घेरे में लगे इल्जामों के चलते पदमुक्त होना पड़ा। सबको याद है कि जैन हवाला केस के बाद, लाल कृष्ण आडवानी ने त्याग पत्र दे जांच व मुकदमें के निर्णय तक कोई पद न लेना स्वीकार किया था। तहलका कांड में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष, बंगारु लक्ष्मण ने रिश्वत लेते पकड़े जाने पर इस्तीफा दे दिया था। नितिन गडकरी ने तो आरोप लगते ही राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
शर्मा ने नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मोदी कहते थे – ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’। अब समाचारों में यह उजागर हुआ है कि उनकी नाक के नीचे ही नहीं, उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष, अमित शाह के आंगन से ही परिवार व पुत्र, जय शाह की कंपनियों तथा व्यापारिक गतिविधियों पर गंभीर सवालिया निशान व शंकाएं खड़ी हो गई हैं। एक अतिश्योक्ति यह भी है कि ‘बिना आग धुआं नहीं उठता’। क्या ऐसी कोई सच्चाई है जिसे देश को जानना चाहिए?
देश ‘विकास की जय’ की प्रतीक्षा कर रहा था। अब समाचारों ने बताया कि कैसे यकायक ‘जय का विकास’ हो गया।
राष्ट्रहित व जनता की मांग यह है कि ताजा प्रकरण में लगे सारे आरोपों की सत्यता की निष्पक्ष जांच अनिवार्य भी है व सामाजिक और राजनैतिक मूल्यों तथा नैतिकता की कसौटी भी, ताकि दोषी बच न पाए व निर्दोष पाप का भागीदार न बन जाए।
अब यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इम्तिहान की घड़ी है। क्या वो मित्रता व दलगत राजनीति को चुनेंगे या फिर सत्यता व नैतिकता को? देश देख रहा है। वक्त की मांग है कि नरेंद्र मोदी एक निष्पक्ष जांच के लिए बगैर देरी अमित शाह का इस्तीफा लें लें या फिर उन्हें पदमुक्त कर दें। एक निष्पक्ष तथा विश्वसनीय जांच हेतु सुप्रीम कोर्ट के दो पदासीन न्यायाधीशों का कमीशन बनाया जाए जो शीघ्र अपनी रिपोर्ट दे व सच्चाई की तह में जाकर उचित कार्यवाही की अनुशंसा करे।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि देश की जनता आरोपों की तह तक जा सच्चाई जानना चाहती है। जनता सात सवालों का जवाब चाहती है:-
1.‘टेंपल इंटरप्राईज प्रा. लि.’, जो कि श्री अमित शाह की धर्मपत्नी, पुत्रवधू व पुत्र- श्री जय शाह की कंपनी है, ऐसा क्या व्यापार करती थी जो साल के भीतर भीतर 16000 गुना कारोबार बढ़ा रही थी? इसमें क्या संपत्तियां थीं, कितने कर्मचारी थे, क्या देनदारी थी व इन सबका पैसा कहां से आ जा रहा था? और जादू की वो कौन सी छड़ी थी, जिससे साल 2012-13 व 2013-14 में नुकसान कमाने वाली कंपनी ने भाजपा सरकार बनने के एक साल के भीतर 16000 गुना (यानि 16 लाख प्रतिशत) कारोबार बढ़ा लिया?
2.ऐसा क्या कारण था कि 16000 गुना बढ़े कारोबार वाली इस कंपनी, यानि टेंपल इंटरप्राईज प्रा. लि., को अक्टूबर, 2016 में नुकसान दिखा बंद करने की नौबत आ गई? क्या आयकर विभाग की जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि वो ऐसी संदिग्ध स्थिति में बंद होने वाली कंपनी की नोटिस दे जांच करते? गुजरात व देश का व्यापारी तो अपने सही व्यवसाय व बैंक में पैसा जमा कराने पर भी इंकम टैक्स विभाग द्वारा उत्पीड़ित किया जाता है, तो श्री अमित शाह के पुत्र की कंपनी के अचानक फायदे व अचानक नुकसान बारे आंख पर पट्टी क्यों बांध ली जाती है? हम यह भी जानना चाहते हैं कि इस एक कमरे का किराया 80 लाख रु. क्यों है?
3. अमित शाह के पुत्र, जय शाह की कंपनी, टेंपल इंटरप्राईज़ प्रा. लि. के खातों में यह भी दर्शाया गया है, कि 51 करोड़ रु. की राशि विदेशों से आई है। जनता जानना चाहती है कि ऐसी कौन सी खरीद फरोख्त या व्यवसाय किन-किन देशों में किया गया, जिससे करोड़ों रुपया विदेश से कंपनी के खाते में आया? क्या श्री अमित शाह व जय शाह इस पर प्रकाश डालेंगे? क्या करोड़ों की राशि विदेश से कंपनी के खाते में आने पर किसी सरकारी एजेंसी के कान नहीं खड़े हुए व कभी कोई पूछताछ क्यों नहीं की गई? यदि यही राशि, किसी साधारण व्यक्ति की कंपनी (जिसका कारोबार 1 साल पहले तक मात्र 50,000 रु. हो) में आ जाता तो फिर क्या ई.डी./सी.बी.आई/इंकम टैक्स आदि विभाग उसका जीना दूभर नहीं कर देते?
4. ऐसे क्या कारण थे कि अमित शाह के पुत्र, जय शाह की कंपनी, टेंपल इंटरप्राईज प्रा. लि. को केआईएसएफ फाईनेंशियल सर्विसेस द्वारा 15.78 करोड़ रु. का ‘अनसिक्योर्ड लोन’ दिया गया। स्मरण रहे कि केआईएफएस फाईनेंशियल सर्विसेस के मालिक, राजेश खंडवाला हैं, जो मोदी जी के पूंजीपति मित्रों के बीच काफी मशहूर हैं। सार्वजनिक पटल पर यह जानकारी भी है कि केआईएफएस फाईनेंशियल सर्विसेस को शेयर व्यापार में ‘सेबी’ द्वारा चेतावनी भी दी गई और व्यापार करने पर भी रोक लगाई गई। जनता का प्रश्न यह है कि क्या राजेश खंडवाला को इस अनसिक्योर्ड लोन के एवज में कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष राहत या फायदा प्राप्त हुआ या फिर यह सारा कर्जा, सिर्फ एक प्रेमभरी समाजसेवा थी? प्रश्न यह भी उठता है कि क्या अमित शाह के पुत्र की कंपनी के अलावा भी ऐसे अनसिक्योर्ड लोन केआईएफएस फाईनेंशियल सर्विसेस द्वारा किसी और कंपनी को भी दिए गए, क्योंकि उनकी बैलेंस शीट में ऐसी कोई जानकारी नहीं दिखती? तो यह उपकार जय शाह की कंपनी पर ही क्यों?
5.अब दूसरी कंपनी – कुसुम फिनसर्व प्रा. लि. – की बात करें, जिसे बाद में एलएलपी में बदला गया। यह भी अमित शाह के पुत्र, जय शाह की कंपनी है। उक्त कंपनी को कालूपुर कमर्शियल कोऑपरेटिव बैंक द्वारा 25 करोड़ का ऋण महज 6.20 करोड़ की दो संपत्तियों को गिरवी रख दिया गया। एक संपत्ति अमित शाह की मल्कियत है और दूसरी, श्री यशपाल चुदासमा की। यह वही यशपाल चुदासमा हैं जिन्हें सीबीआई द्वारा सोहराबुद्दीन व कौसर बी. फर्जी एनकाउंटर केस में आरोपित किया गया था, व साल 2015 में सीबीआई कोर्ट ने इन्हें व श्री अमित शाह को बरी कर दिया। देश की जनता रिज़र्व आर.बी.आई. से पूछना चाहती है कि क्या आरबीआई व बैंक के नियम इस बात की अनुमति देते हैं कि मात्र 6.20 करोड़ की संपत्ति पर 25 करोड़ का ऋण दिया जा सके? क्या इन्हीं उदार शर्तों पर कालूपुर बैंक द्वारा ऐसा ऋण अन्य किसानों व छोटे व्यवसायियों को भी दिया गया है या फिर मापदंड अलग अलग हैं?
6. अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी, कुसुम फिनसर्व की अनोखी दास्तां यहीं समाप्त नहीं होती। इस कंपनी का प्राथमिक धंधा तो शेयर व्यापार व आयात-निर्यात का है। 2014 में मोदी सरकार बनने व पीयूष गोयल के केंद्रीय बिजली मंत्री बनने के बाद, इस कंपनी ने 2016 में पवन चक्की (विंडमिल) द्वारा 2.1 मेगावाट बिजली उत्पादन का प्लांट भाजपा शासित मध्यप्रदेश के रतलाम में लगाने का निर्णय लिया। बिजली मंत्रालय के रिन्यूएबल एनर्जी के तहत मिनी रत्न संस्था (प्त्म्क्।) द्वारा 10.35 करोड़ का ऋण भी जय शाह की कंपनी को दे दिया गया। देश जानना चाहता है कि वो ऐसे कौन से मापदंड हैं, जिनके तहत शेयर व आयात निर्यात का धंधा करने वाली कंपनी, जिसे बिजली उत्पादन का रत्ती भर भी अनुभव नहीं था, भारत सरकार द्वारा सस्ते ऋण के योग्य पाया गया?
7.देश यह भी जानना चाहता है कि रतलाम में लगाए जाने वाले पवन ऊर्जा प्लांट की मौके पर वस्तुस्थिति क्या है? देश तो यह भी पूछ रहा है कि मौके पर ऐसा कोई पवन ऊर्जा प्लांट है भी या नहीं? क्या पीयूष गोयल यह भी बताएंगे कि उनके मंत्रालय द्वारा बगैर तजुर्बे की कितनी कंपनियों को इस प्रकार सस्ते ऋण की सहायता दे, भाजपा शासित प्रदेशों में प्लांट लगावाए गए? क्या बेरोजगारी दूर करने का न्यू इंडिया में यह न्यू माॅडल है?